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६२ :: तुलसी चौरा
 

'उसने तो बाँह उखाड़ने वाला ब्लाउज पहन रखा है, री।'

'अगर उसे पता चल जाए कि आपको यह अच्छा नहीं लगा, तो अगले ही क्षण उसे उतार फेंकेगी। आपके प्रति इतनी श्रद्धा है उसके मन में।'

'मैं कौन होती हूँ री उसकी, कि मेरे प्रति श्रद्धा रखे। यहाँ ठहर गयी है, इसलिये कहना पड़ रहा है। मठ के उत्तराधिकारी के धर कोई फिरंगिन नंग धड़ंग धूमे तो लोग हमारे बारे में क्या कहेंगे?'

मैं उसे समझा दूँगी, काकी? फिलहाल आप ऊपर चलिए न!'

बसंती अपना वाक्य खत्म करे इससे ही कामाक्षी का तीखा स्वर उसे काट गया।

'मैं ऊपर नहीं आती। उसे देखना है, तो नीचे आ जाए। यही खेल कर दिखा दूँगी।'

'अभी आयी, काकी!' बसंती ऊपर लपकी। इतना ही हो गया तो बहुत समझो।

उसे लगा, काकी में सुबह वाली निष्ठुरता उतनी नहीं रही। चेहरे का कसाव अब कुछ ढीला पड़ गया था। पार्वती ने बताया था कि कमली की दी हुई घड़ियों की अम्मा ने तारीफ की थी। बसंती इस खिंचाव को अपने ढंग से कम करना चाहती थी। काकी की तारीफ कमली से और कमली की प्रशंसा काकी से कर, वह चाहती थी कि दोनों एक दूसरे के प्रति रुचि लें।

ऊपर पहुँच कर बसँती ने सबसे पहले कमली का बिना बाहों बाला ब्लाउज बदलवा दिया।

'कमली, हम लोग नीचे ही चलते हैं। काकी नहीं बुला रही हैं। शी ईज ए स्ट्रैंज ट्रेडिशन लिस्ट...!'

'बीइंग ट्रेडिशनलिस्ट ईज नाट एट आलं ए क्राइम...। 'बसंती' चलो चलें।' कैमरा और कैसेट रिकार्डर लेकर नीचे चलने को तैयार हो गयी।