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४८ :: तुलसी चौरा
 

शर्मा जी भी सोच में पड़े थे, इसलिए भूल ही गए। पर रवि ने कार रुकवाई। शर्मा जी और रदि की चप्पलें कार में छोड़कर नंगे पाँव उतरे, तो कमली ने भी उनकी देखादेखी बही किया। नारियल फोड़कर परिक्रमा की और कार में आकर बैठ गए। रवि रास्ते में कमली को गणेश मन्दिर और गाँव में प्रचलित प्रथा के सन्दर्भ में बताता रहा। रेवलोन इंटीमेट की गंध कार में फैली हुई थी। कमली को गाँव का प्राकृतिक माहोल बहुत अच्छा लग रहा था। रवि हालाँकि उसे अंग्रेजी या कभी फ्रेंच में समझाने की कोशिश कर रहा था, पर कमली ने तमिल बोलने की पूरी चेष्टा की।

उसके बोलने का लहजा कुछ अटपटा जरूर था, पर उसके शब्द साफ समझ में आ रहे थे। प्रत्येक नये शब्द को वह उत्साह से सीख रही थी। जैसे वे शब्द न होकर कोई मानदेय हों। यूँ यह स्थिति हर उस छात्र की रहती है, जो किसी भाषा को सम्पूर्ण उत्साह के साथ सीखता है। 'पथ बंधु विनायक' का नामकरण उसे बेहद भा गया। उसे बार-बार दोहराती रही।

शर्मा जी ने बताया, 'गाँव के इतिहास में इसका नाम 'मार्गसहाय विनायक' है। पर लोगों ने सुविधानुसार इन्हें 'पथबंधु' कहना शुरू कर दिया।

'इतिहास चाहे जो भी कहे, लोगों की प्रचलित मान्यताएं ही स्थाई होती हैं। लोगों की भाषा, लहजा उनके भाव को महत्व दिया जाता रहा है। भाषा विज्ञान की अवधारणा का मूल कारण यही तो है। यदि ऐसा न हो, तो भाषा व्याकरण के घेरे में बंधकर बस धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी और उसकी जगह म्यूजियम में ही रह जायेगी।' कमली बोली। शर्मा जी को लगा यह फिरंगी युवती सुन्दर ही नहीं है बल्कि इसे विषय का ज्ञान भी खूब है। उन्हें याद आया रवि को बचपन से भाषा विज्ञान और तुलनात्मक अध्ययन में बेहद रुचि रही है।

कार घर के आगे जब रुकी, सुनह खिल आयी थी। कार की