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४२ :: तुलसी चौरा
 


तकलीफों के बावजूद, जो लड़की उनके बेटे को इतना प्यार करती है। वह करोड़पति की पुत्री, साधारण से साधारण सुविधा के लिए भी तरसे, यह वह कतई नहीं चाहते। वेणु काका के कहे वाक्य याद आ गये।

'शर्मा का रुपया भी बच जायेगा।' उनके अहँ को चोट लगी थी। क्या दे खर्च बचाना चाहते हैं? नहीं…।

उस दिन किसी उत्तर भारतीय पर्व के लिए बैंक और डाकखाने बन्द थे। शर्मा जी ने बढ़ई और मिस्त्री को कहला भेजा। फिलहाल खर्च के लिए घर पर पर्याप्त रुपये थे। कभी सस्ते में शीशम की लकड़ी खरीदकर पिछवाड़े में डलवा दी थी। चलो अब काम आ जाएगी।

दूसरे पहर जब मिस्त्री और बढ़ई मा पहुँचे तब कामाक्षी ने पूछा, 'क्या बनवा रहे हैं? ये लोग किसलिए आये हैं?'

'तुम्हारा साहबजादा आ रहा है न, फ्रांस से। सोच रहा हूँ, उसके लिए ऊपर एक कमरा बनवा दूँ। उसे सुविधा रहेगी।' रवि के आने की सूचना भर दी। शाम अचानक वेणु काका इधर से निकले तो सारी तैयारियाँ देखकर हँस पड़े। 'वाह! जब मैंने कहा था, तो मुँह बना रहे थे। अब सारा तामझाम इकट्ठा किए बैठे हो।'

'अब मन को अच्छा लगे या बुरा, करना तो होगा ही न।'

'अब ऐसा मत कहो। ऐसी कोई बात तो हुई नहीं।' वेणु काका ने उनका उत्साह बढ़ाया।

दस दिनों में सारा काम निपट गया। एक कमरा बनकर तैयार हो गया। वेणु काका और बसन्ती उन्हें प्रमाण पत्र दे गए।

पुताई-सफाई हो रही थी कि रवि से उसके आने की तारीखवार सूचना देता पत्र आ पहुँचा। उसमें एक चित्र भी था। भारतीय पारम्परिक परिधान में कमली का चित्र। चित्र भारतीय दुताबास में हुए किसी भोज के अवसर पर लिया गया था। 'आपको अवश्य पसन्द आयेगा'-रवि ने लिखा था। संचमुच उस चित्र में कमली बहुत