दादी ने अपना सवाल दाग दिया।
'तेरा बेटा इस बार आयेगा या नहीं?'
'हाँ लिखा तो है। इन्होंने भी आने को लिख दिया है। वेणु काका की बनंती, पारू को बता रही थी में, ये कहाँ बताते हैं हमें?'
'तो वेणुगोपाल की बिटिया से तुम्हें खबर लगी, क्यों?'
'हाँ हाँ! और कौन है, जो हमें आकर बताए। इनसे तो कुछ पूछ लो, बस सर्र से गुस्सा चढ़ जाता है।'
मीनाक्षी दादी और कामाक्षी ओसारे पर बैठी बतिया रही थी। पारू सीढ़ियों के पास बैठी थी।
पश्चिम की ओर से एक मोटा और नाटा आदमी चला आ रहा था। चार हाथ की धोती, काले रंग की कमीज, कंधे पर अंगोछा और बड़ी बड़ी मूँछों वाला वह व्यक्ति घर के सामने आ खड़ा हुआ। पार्वती धीमे से उठ गयी।
'बिटिया! बाऊ जी घर पर हैं?'
'न' भूमिनाथपुरम गये हैं। लौटने में देर लगेगी।'
'तो ठीक है। वे लौटें तो बोल देना इरेमुडिमणि आये थे। कल सुबह फिर आ जाऊँगा।'
वह व्यक्ति लौट गया। कामाक्षी ने आवाज सुनकर बाहर झाँका।
बाऊ जी से मिलने आये थे। कल सुबह फिर आएँगे' पार्वती बोली।
'कौन था री! देशिकामणि नाडार की आवाज लग रही थी।' मीनाक्षी दादी ने पूछा।'
'हाँ, दादी, वे ही थे। इनके पास काम से आए थे।'
'तो वही था। उसको विश्वेश्वर से कौन सा काम पड़ गया?'
'हमें तो नहीं मालूम। कभी वह आते हैं, कभी वे उससे मिलने चले जाते हैं।'