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२४ :: तुलसी चौरा
 

बसंती ने उसे अपनी देह से सटा लिया और भीतर ले गयी।

'इस साल इसका स्कूल फाइनल हो जाएगा,' कुमार का बी॰ ए॰ में पहला साल है। कालेज जाने के लिये रोज बीस मील की यात्रा करनी पड़ती है। रोज उसे लौटते सात साढ़े सात हो जाते हैं। बेटी को तो नहीं पढ़ाऊँगा। बस स्कूल फाइनल कर ले, फिर व्याह दूँगा।'

'गांव में ही कोई कालेज हो तो पढ़ा सकते हैं। लड़कियाँ बाहर पढ़ने जाएँ, यह कुछ ठीक नहीं लगता। फिर कस्बे के एक मात्र कालेज में भी लड़के लड़कियाँ साथ-साथ पढ़ते हैं। आपको वह अच्छा नहीं लगेगा।'

'मुझे क्या अच्छा लगता है, क्या बुरा, यह तो बाद की बात है। विद्या ज्ञान और विनय का संबर्द्धन करे, यह जरूरी है। पर देखता हूँ, इधर विद्या अज्ञान और उद्दंडता को ही बढ़ाती है। हर एक छात्र अपने को फिल्मी नायक समझने लगा है और छात्रा अपने को नायिका से कम नहीं समझती। आप ही बताइये, गलत कह रहा हूँ?'

'पर आपकी बात सुनने वाला यहाँ है कौन? लोग आपको दकियानूस कहकर मखौल बनाएँगे।'

'बस यही तो नहीं होता। बस आप ही ऐसा कहते हैं। हमारे यहाँ पुस्तकालय के इरैमुडिमणि है न, वह भी मेरी बातों से सहमत है। उनका कहना है, कि आज की युवा पीढ़ी भविष्य की चिंता नहीं करती, श्रम का महत्व नहीं समझती, बस नकली और क्षणिक सुख सुविधाओं में ही लिप्त है। वह न शारीरिक श्रम के योग्य है न मानसिक। बस एक त्रिशंकु की स्थिति में जी रहे हैं ये लड़के। यह बहुत ही घातक स्थिति है।'

'कौन? देवशिखामणि नाडार? यह तो मेरे लिये आश्चर्य की बात है कि आप दोनों के विचार एक हैं।'

'खैर जो भी हो। हम लोगों में कई मतभेद हैं पर कुछ मुद्दों पर दोनों की सोच एक सी है। वह ईमानदार है, परोपकारी है, एकदम