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तुलसी चौरा :: १७
 


टोहने का सुझाव भी दिया।

‘नहीं, शर्मा, यह असंभव है। वहाँ तो कोई भी किसी की निजी जिंदगी में दखल नहीं देता। सुरेश तो शादी ब्याह के बाद दिल्ली से वहाँ पहुँचा था। पहले न्यूयार्क रहा, फिर पैरिस। अगर वह भी वहाँ छड़ा ही गया होता तो हो सकता है, मेरी स्थिति भी तुम्हारी जैसी हो गयी होती। हो सकता है, एक अमेरिकी या फ्रैंच बहू होती, और मैं विरोध तक न कर पाता।’

वेणु काका तो शर्मा जी का बोझ कम करना चाहते थे। वे शर्मा जी के भीतर की शंका, उनका भय बखूबी समझ रहे थे। शर्मा जी का परिवार वैदिक कर्मकांडी पंडितों का रहा है। शर्मा जी स्वभाव से भले ही अच्छे हों, पर हैं, दकियानूस। बचपन में ही वेद शास्त्रों का अध्ययन कर चुके थे। पीढ़ी-दर-पौड़ी वेदों का अध्ययन उनके यहाँ होता रहा था। गाँव के कई धार्मिक, नैतिक मसलों पर शर्मा के परिवार की ही सलाह ली जाती। उत्तरी दक्षिणी और बीच के मोहाल में अद्वैत मठ के आचार्य के विशेष प्रतिनिधि थे। इस कारण उनकी प्रतिष्ठा जो थी सो थी ही, साथ ही श्रीमठ के लिए दान आदि जुटाने का काम भी उन्हें ही सौंपा गया था। बेटे के इस विवाह का प्रभाव उनकी प्रतिष्ठा पर पड़ेगा, यह वह समझ रहे थे। वेणु काका की समझ में बात आ गयी। ‘मैं तो सोच रहा था कि किसी तरह इसे रोक लूँगा। तभी तो मैंने इस पत्र के बारे में किसी से चर्चा नहीं की।’

‘अब तो काकू, ऐसा सोचना ही छोड़ दो। कमली को अब अलग करके देखना नामुमकिन है। मैं जब पैरिस में कमली से विदा ले रही थी, तो उसने बहुत प्यार से एक अलबम भेंट में दी थी। अगर आप बुरा न मानें तो दिखा दूँ?’

भीतर की तमाम नफरत के बावजूद, कहीं न कहीं उस फिरंगिन को देखने की इच्छा तो थी ही। बेटे की पसंद को वे देखना भी