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१८० :: तुलसी चौरा
 


पहाड़ के एस्टेट मालिक सारे पहुँचे हैं। रोटरी क्लब के सारे सदस्य बारात के आगे चल रहे हैं। शर्मा को अब किस बात की कमी है।' हरिहर अय्यर ने सीमावय्यर को और भड़का दिया।

'देखते जाना। आखिर भगवान भी है न, वह इनसे निपट लेगा।' सीमावय्यर उँगलियाँ चटखाते बोले।

'अब हमें भला लगे या बुरा। अच्छा काम हो रहा है। तो हम उनका अनर्थ क्यों सोचें। चुप भी करो, अब।' हरिहर अय्यर ने जब उलट कर सीमावय्यर को डपट दिया, वे चौंक गए।

सीमावय्यर भाँप गए कि केस के हार जाने के बाद उनसे जुड़े तमाम लोग हताश हो गये। उन्हें और अधिक समय तक शर्मा के विरोध में खड़ा करना शायद संभव न हो। इरैमुडिमणि भी भड़के हुए हैं। इन लोगों की पोल पट्टी खोलने की धमकी दी है। सीमावय्यर के बुरे दिन शुरू हो गए। शर्मा जैसे आस्तिक का भी विरोध करते रहे और इरैमुडिमणि जैसे नास्तिक का भी। इसके विपरीत शर्मा को दोनों ही पक्षों का सहयोग और सहानुभूति मिल रही थी। मुकदमे के स्थ- गित होने के कारण लोमावय्यर की प्रतिष्ठा अब वह नहीं रही। पर उनकी करतूतें वैसी ही थीं।

पुरोहित और हलवाई को भड़काने की सारी कोशिश उन्होंने की थी। पर वह भी नहीं कर सके। वेणुकाका बुद्धि, धन और समा- जिक प्रतिष्ठा में सीमावय्यर से दस हाथ आगे थे।

उस दिन बारात के स्वागत के बाद रात ग्यारह बज गये। सभी गाँव वालों को खाना खिलाया और जात पाँत का कोई भेदभाव नहीं रखा गया।

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सुबह मुहूर्त था। सबको काम निपटाकर सोते रात दो बज गए। ढाई बजे तक हलवाई भी अंगोछा बिछाकर लेट गए।

रात पौने तीन के लगभग पंडाल में आग लग गयी। लोगों के