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१७८ :: तुलसी चौरा
 


रहूँगा।’

छोड़ो अब।’ इरैमुडिमणि ने कहा।

पारस्परिक मतभेद हो, तब भी उनमें एक खास शालीनता रही। उनकी दोस्ती में इससे कोई फर्क नहीं पड़ा वह इनकी टाँग खींचते हैं, ये उनकी। पर सीमा का उल्लंघन कभी नहीं किया। विवाह के पहले दिन पथबंधु विनायक के मन्दिर से ही बारात प्रस्थान तय हुआ था। नादस्वरम के स्वर में पूरे वातावरण में मंगलध्वनि घोल दी।

‘रवि जमाई बाबू के लिए नया सूट, नये जूते सब तैयार हैं, बसंती ने रवि से कहा।’

‘अब तो यहाँ ब्राह्मणों के विवाह में भी फैंसी ड्रेस चलने लगा है। हम लोंगों के विवाह में इसका प्रवेश कहाँ से हो गया? धोती, कुरता और उत्तरीय पहन कर यदि बारात में चलूँ, तो क्या घट जाएगा। मुझे यह नहीं चाहिए। ले जाओ यदि लड़के को सूट पहनाया जाना है, तो क्या लड़की स्कर्ट पहनेगी? इंडियन मेरेज शुड वी इंडियन मैरेज... रवि ने मना कर दिया। शर्मा जी का हृदय भर गया। विदेश में कार्य- रत दुल्हे को, धोती और उत्तरीय में देखकर पूरा गाँव आश्चर्य में पड़ गया।

पूरा गाँव बारात में उमड़ आया था। आस पास के गाँव वाले भी समाचार पत्रों के माध्यम से इसमें रुचि लेने लगे थे। इसलिए वे भी चले आये।

शहरी पुरोहित ने विवाह के सारे अनुष्ठान पूरे किए। कमली को ठेठ देहाती शैली में सजाया गया था। हाथों और पाँवों में लगी मेंहदी उसके साफ गुलाबी रंग पर निखर आयी थी। दुल्हन को सजाने के बाद बसन्ती ने उसकीं नजर उतारी।

वेणूकाका की तैयारियों में कोई कमी नहीं थी। रवि-कमली का विवाह उनके लिये एक चुनौती थी। अग्रहारग के लोगों को कुछेक को छोड़कर शेष इस विवाह में रुचि लेने लगे। कुछ लोगों ने इसका