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तुलसी चौरा :: १७३
 


मन्दिर चली गयी। बाकी तो हमें नहीं मालूम।

पर कमली चप्पल पहने मन्दिर गयी हो, हमें नहीं विश्वास होता। इस घर में जब तक रही, उसके नेम अनुष्ठान में कोई कमी नहीं देखी हमने। हमारे देश की नहीं है, जाति की नहीं है, हमारे रंग की नहीं है, पर इतना सम्मान, इतनी विनम्र और सुशील है...।'

मीनाक्षी दादी चौंक गयी। क्या सचमुच कामाक्षी है?

'दादी, क्या हुआ? ऐसे क्या देखती हो? शक होने लगा है क्या? अरे, किसी को पसन्द नहीं करते, तो उसके ऊपर झूठे आरोप तो नहीं लगा सकते। कमली से मेरे मन मुटाव के कारण कुछ और हैं। मौसी ने आकर बताया है कि उसके श्लोक पाठ से आचार्य जी भी खुश हुए। हम कैसे उसकी बुराई कर दें। यहाँ के लोगों की तो आदत ही पड़ गयी है, कि किसी को नापसन्द करो, तो उसकी बेइज्जती कर डालो।'

'कोर्ट में वेणुगोपाल ही तुम्हारे पति का वकील था। सुना है कि कैलाश नाथ जी उनके घर पर तो कमली को साक्षात् सरस्वती का अवतार कहा, पर कोर्ट में कमली के खिलाफ गवाही दी। पर इन्होंने उस बात को रिकार्ड कर लिया और कोर्ट में सुनवा दिया। बड़ी बेइज्जती हो गयी। बेचारे की।'

'तो और नहीं तो क्या इतने बुजुर्ग हैं। मन्दिर में पूजा पाठ करते हैं पर झूठ कैसे बोल लेते हैं?'

'झूठ ही नहीं, यहाँ तक कह दिया कि कमली और रवि ने मन्दिर को भ्रष्ट कर दिया है....।'

'लोगबाग केस के बारे में क्या कह रहे हैं?'

'तुझे क्या? तू तो अभी अच्छी हो गयी है। उसकी फिक्र क्यों कर रही है।'

'फिक्र नहीं दादी, बात जानना चाहती हूँ।'

'वेणुगोपाल और तुम्हारे पति तो विवाह की तैयारी में लगे हैं। आज भी वेणु के घर सुहागन का ज्योनार है। उनकी बिटिया के