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तुलसी चौरा :: १७१
 


भाल कर रहे थे। एक पुरजोर गुस्से और जिद में वह लोगों को अपने पास ही नहीं आने दे रही थी। जब से उसे इस बात का पता चल गया कि शर्मा जी उसकी सलाह के बगैर ही कमली और रवि के विवाह की तैयारियों में लगे हैं, तब से कामाक्षी बिस्तर से लग गयी। शर्मा और लोगों की परवाह किए बिना ही, कुमार को अपने मायके भिजवाकर मौसी को बुलवा लिया। कमली चूँकी वेणुकाका के घर रह रही थी इसलिए मौसी को यहाँ रहने में कोई आपत्ति नहीं होगी। यही सोचा था। मीनाक्षी दादी, देख रेख के बहाने अक्सर आ जाती।

शर्मा, रवि या कमली की बातें उठते ही वह तिलमिला जाती और उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगता। यही वजह थी कि कुमार और पारू उनकी बातें ही नहीं करते। हालांकि किसी तरह झगड़ा नहीं हुआ, पर झगड़े की शुरूआत के पूर्व वाला असहज भौन जरूर वहाँ पसर गया था।

कुमार मौसी को गाँव से लिवा लाया। उसी दिन शाम मौसी ने कामाक्षी से पूछ लिया, 'क्यों री कामू, पहले एक फिरंगिन यहाँ रहा करती थी, कहाँ गयी? लौट गयीं या तुम लोगों ने उसे निकाल दिया।'

कामाक्षी ने पहले तो इसे अनसुना कर दिया पर बुढ़िया भी पीछा कहाँ छोड़ने वाली थी।

'जानती हो, काहे पूछ रही हूँ। हमने तो कुछ सुना था। हमारे गाँव से कुछ लोग आचार्य जी के पास गये थे, उन लोगों ने लौट कर बताया कि वह फिरंगिन तुम्हारे बेटे के साथ वहाँ आयी थी। उसने सौन्दर्य लहरी, कनक धारा स्तोत्र, भजगोबिंद का स्पष्ट पाठ किया था और अपनी भाषा में भी उसे सुनाया था। सुना है, आचार्य जी बहुत खुश थे। वे मौन ब्रत में रहे, इसीलिए सुना, कुछ नहीं बोले, पर बहुत प्यार से सुनते रहे, आशीर्वाद भी दिया । पूरा गांव कह रहा है। हम तो हैरान रह गए। आचार्य जी को तो जानते ही हैं हम। वे सबको इस तरह नहीं