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तुलसी चौरा :: १२१
 

कमली को देखकर तो उन्होंने घर में एक छोटे युद्ध की ही योजना बना डाली। 'यह क्या कर डाला कामू? हमारे कुल गोत्र में कहीं ऐसा भी हुआ है? मैं यहाँ कैसे रहूँगी री?'

'मैं क्या करु मौसी, मुझे भी नहीं पसन्द है। तुम इस ब्राह्मण महाराज से पूछ लो। देखें कुछ यात पल्ले पड़ती है या नहीं।'

कामाक्षी के अनुसार घर में शर्मा, रवि, पार्वती, कुमार, कमली को तरफ हैं।

अब तक अपना विरोध इसलिए वह प्रकट नहीं कर पाती थी पर मौसी के आगमन से उस नफारत को बाहर निकालने का रास्ता मिल गया। बुढ़िया ने एक-एक कर सबको भड़काना चाहा। पर किसी ने भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।

अन्त में शर्मा से ही पूछ लिया।

'तुम शास्त्र जानते हो। ऐसा अनाचार किसलिए कर रहे हो? इस उम्र में यह सब भी झेलना लिखा है।'

'उससे कोई अनाचार नहीं होगा। वह हमसे भी अधिक इन बातों को मानती है, शर्मा जी बोले।

'यह कैसे हो सकता है?' बुढ़िया बुदबुदायी।

'न बने, तो कहीं और ठहर लें!' शर्मा जी कहना तो यही चाहते थे, पर चाहते थे कि बुढ़िया ही पहल कर ले।

'सोचती हूँ, शंकर सुब्बन के घर ठहर लूँ।'

'आप ऐसा चाहती हैं तो मैं कौन होता हूँ रोकने वाला।' शर्मा जी ने बातचीत बंद की पर कामाक्षी को गुस्सा आ गया।

'बीस साल से यहाँ ब्रह्मोत्सव में मौसी आती रही हैं। आपने उन्हें क्षण भर में नीचा दिखा दिया। क्यों हमारे मायके वालों आपको काटते हैं? बाहर वालों के लिये हमारे घर वालों को भगायेंगे?'

'मैं किसी को नहीं भगा रहा। वे खुद वहाँ रहना चाहती हैं।