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तुलसी चौरा :: ११७
 


उसे देख लिया। लपक्रती हुई नीचे गयी और बगीचे में पूजा के लिए फूल चुन रहे शर्मा जी के पास गयी और बोली, 'देखिए, आपको यह सब अच्छा लगता है क्या? इस उम्र में आधे कपड़े पहने उल्टी खड़ी है।'

शर्मा जी मुस्कुराप 'वह योगासन कर रही है। तुम्हें अच्छा न लगे, तो मत देखो।'

शंकरमगंलम में दासियों का एक मोहल्ला है। उस मोहल्ले में शिवराज नहुबनार नाम के एक नृत्य गुरु थे। कमली भरतनाट्यम और कर्नाटक संगीत सीखना चाहती थी। लिहाजा रवि ने उस मोहल्ले के एक भागवतर और शिवराज नहुबनार को घर आकर प्रशिक्षण देने को राजी करवा लिया था। सप्ताह के तीन दिन संगीत, तीन दिन नृत्य और एक दिन शर्मा जी से संस्कृत।

'उसे अगर इतना ही पागलपन है, तो वहीं जाकर सील लें। नृत्य, संगीत के नाम पर जाने कैसे-कैसे गवैये, नचाये घर चले आते हैं।' कामाक्षी तो लड़ बैठी। लिहाजा उनका आना बंद हो गया, कमली वहाँ जाने लगी।

शर्मा जी और रवि एक दिन घाट से लौट रहे थे, तो रवि को पहली बार उस बात का पता लगा।

'इस गांव के लोग बहुत दूषित प्रकृति के हैं। रवि! पता है, मुझे मठवालों ने तार देकर क्यों बुलवाया था। तुमने मुझसे नहीं पूछा अब तक, पर मैं तुम्हें अब बता रहा हूँ। तुम्हारे और कमली के यहाँ रहने और देशिकामणि को वह जगह किराये पर उठाने को लेकर किसी ने एक गुमनाम पत्र लिख दिया था और मुझे मठ के उत्तरदायित्व से मुक्त करने की सिफारिश की थी। उसका आरोप था कि मैं विदेशी युवती को घर पर अंडा, मांस-मछली बनवा कर खिलाता हूँ। नास्तिक को मठ की जमीन देकर आस्तिकों के लिए परेशानियाँ खड़ी करता हूँ। सब सीमावय्यर का काम है। पर अच्छा हुआ वहाँ मठ के मैनेजर