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९८ :: तुलसी चौरा
 


साल भर यहीं रहेगी। मैं भी लगभग कुछ ऐसे ही एंसाइनमेंट पर आया हूँ। हमारा मुख्यालय शंकरमंगलम रहेगा....।’

‘मुझे कोई आपत्ति नहीं है। तुम साल भर यहाँ रहोगे यह मेरे लिए खुशी की बात है।’

‘फिर आप चिंता किस बात की कर रहे हैं, बाऊ?’

‘यही कि एकदम गंवार और दकियानूस औरत के आधिपत्य में तुम दोनों यहाँ रहकर काम कर सकोगे या नहीं, मेरी तो चिंता इसी बात की है कि इस घर में मेहमान की तरह जो आयी है उसका मन दुखे।’

‘कमली मेहमान नहीं है बाऊ। वह इस घर की ही एक सदस्या है।’

शर्मा जी कुछ हिचके, फिर पूछ लिया।

‘ठीक है, तुम कहते हो, और मैं भी मान लेता हूँ। पर तुम्हारी मांं? उसे तो अभी पूरी बात नहीं मालूम है। पर हजार शंकायें हैं उसके दिमाग में। तुम्हारी माँ के भय से ही एकबारगी सोचा था कि तुम दोनों को वेणुकाका के घर ठहरा दूँ।’

‘अब बात समझ में आयी है, बाऊ! आप यही पूछना चाहते हैं न कि इस माहौल में हमारा यहाँ रहना संभव है या नहीं।’

‘तुम्हारे ठहरने के बारे में मुझे कोई चिंता नहीं है। यह घर तुम्हारा है और तुम्हारे मां-बाप और तुम्हारे बीच कोई झगड़ा होने से रहा। समस्या कमली की है। यदि तुम्हें आपत्ति न हो तो कमली को वेणुकाको के घर ठहरा देंगे। वे लोग प्रगतिशील विचारों के हैं, इसलिए वहाँ कोई समस्या नहीं होगी।’

‘अगर ऐसा हुआ, तो उसे अकेले वहाँ भेजते अच्छा नहीं लगेगा। मुझे भी साथ ही जाना होगा।’

‘उसके जाने से तो कुछ नहीं होगा। अगर तुम भी साथ चले गए तो अफवाहें फैलेगी।’