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प्रभु का दूसरी बार आना। निगहबान घर अपने जा दिन का नूर अब पाया है राही देख सलामत का शाहनशाह अब पाया है। ५० सत्तावनवां गीत । भजन न्याय दिना बरनन बहु भारी वाको को जन गैहै घोर टेर घन मेघन माहीं तुरही शबद बजै है चारों दिगत मिरतक मुनिके जीवत सकल उठे हैं जल श्री थलस हरिखित धाई सन्तन सैन्य जमै है खोट धरम पहिने विश्वासी सुन्दर बिमल दिखे हैं दुष्ट भयातुर मन अति शोकित्त बाएं हाथ करे हैं नाश्रित को प्रभु दहिने राखा जो करुणामय ॥