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५० प्रभु यम खीष्ट । 8८ अठतालीसवां गीत । भैरो जय जनरंजन जय दुखभंजन जय जय जन सुखदाई अशरन के शरनागति दायक प्रभु यीश जगराई पाप निवारन दुष्ट बिदारन सन्तन के सहजाई अदभुत महिमा जगत दिखाए भूमि निवासन अाई अलख अगोचर अन्तर जामी नर तन देह धराई अत गुन तेरा कत मैं गुनिहे। तारनित अधिकाई उदधि समाना प्रेम तिहारो जामध जगत समाई जान अधम जन को प्रभु दीजे बिन्दु समाना ठाई॥