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४८ प्रभु यस खीष्ट । पूर्बी ४६ छियालीसवां गीत। भजि ले मन दोन बन्धु दीन के सुतात रे दीन शरन दोन भरन दीन जनन भ्रात रे दीन पोख दीन तोख तासुं सतत पात रे दोन निकट जेहि जात फीरि नाहि पात रे दीन असन दीन वसन सर्व के सुदात रे दीन नेह दीन गेह दीन नात जात रे दीन ज्ञान दीन मान दीन शान पांतरे सुफल सकल दोन सतत तासु पाय खात रे दीन नाथ दृष्टि और काउ नाहि पात रे दीन जान जोडि पानि यीशु गुनन गात रे ॥