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४४ प्रभु यस ख्रीष्ट। ४२ बयालीसवां गीत । भजन जिन परतीस यिशू पर नाहों कस पावें भवपारा हो ज्ञानी पंडित जित जग भयेउ गये यहि धारा हो ईश्वर वचन अनादि अनन्ता साई देत सहारा हो सरग छोड़ जग में प्रभु ग्रायो मेघ जहां अंधियारा हा जननी गर्भ मनुज तनधारा सकल सृष्टि करतारा हो नर सब भूले भेड़ समाना जिन का नहीं रखवारा हो तिन को यिश महा सुख दीन्हा दुख महि कीन्ह उधारा हो दास करे कहं लग परसंसा प्रेम अमित विस्तारा हो श्रावो सब मिलि प्यारो भाई संत गहा निस्तारा हो।