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१२२ सच्चे खिष्टियान को यात्मिक गति । तुम तो जग के तारनवारे. हम तो पापी दीन बेचारे । कृपा अपनीही कीजे जी ॥ तुम तो हो सरगन के राजा . आय जगत में दीनन काजा । मोहे अपना करलीजे जी ॥ यह शैतान बड़ा दुःखदाई. जाने जगतही सकल भुलाई । याका बंधन कीजे जी ॥ हम तो इन बिषयन में भूले . घर को चिन्ता में रह फूले । धर्मातमा दीजे जी ॥ ११५ एक सौ पंदरहवां गीत । ठुमरी यीश पैयां लागो . नाम लखाई दोजी हो॥ जग अंधेरे पथ नहीं सूझे. दिल का तिमिर नसाई दीजा हो ॥ जनम जनको सोवत मनुआ. ज्ञानक नोंद जगाई दीजी हो ॥ हम पापिन की अरज मसीह जी. पापक बन्द छुड़ाई दीजा हो ।