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११० सच्चे ख्रिष्टियान को आत्मिक गति । ३ नर उस देस का जहां मैं जाता मेरा मुंजी ईसा है वहां न ग़म है न आहे भरना और न गुनाह है न कभी मरना मैं मुसाफ़िर और मैं परदेसी मैं सिर्फ रात भर टिकने का ॥ मेरे वहां के रिशतादार भी इधर आओ कहते हैं पस रुखसत होऊं यह जाए वीरान है अंधेरी छाती दिल परेशान है मैं मुसाफ़िर और मैं परदेसी मैं सिर्फ रात भर टिकने का। जब घर पहुंचा फिर न परदेसी न मुसाफिर रहुंगा पासमानी देस में मेरा आराम है कमाल शादमानी वहां दवाम है मैं मुसाफिर और मैं परदेसी मैं सिर्फ रात भर टिकने का ।