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श्रीचन्द्रावली

अवगाहत―डुब्बी लगाए हुए।

पच्छ―पच्छ―पक्ष, जुग पच्छ―अँधेरा और उजेला पाख।

प्रतच्छ―प्रत्यक्ष।

लुकत―छिप जाता है।

अविकल―पूर्ण, ज्यों का त्यों।

तितनो―उतना।

रजत―चॉदी।

चकई―चक्र।

निसिपति―चन्द्रमा।

मल्ल―पहलवान।

कलहंस―राजहंम।

मज्जत―नहाते हैं।

पारावत―कबूतर।

कारंडव―हस या बत्तव की जाति का एक पक्षी।

जल-कुक्कुट―जल मुर्गी।

चक्रवाक―चकवा।

पाँवड़े―पायदाज, वह कपड़ा या बिछौना जो आदर के लिए किसी के मार्ग में बिछा दिया जाता है।

रत्नरासि―रत्नों का ढेर।

कूल―किनारा।

बगराए―फैलाए, छितराए।

मुक्त―मोती।

श्यामनीर―यमुना का जल श्याम होता।

चिकुरन―बाल।

सतगुन―सतोगुण। सतोगुण का रंग श्वेत माना जाता है।

मोट की मोट―गठरी की गठरी।

बिलमाई―रुकी रहना या ठहरी रहना (किसी भाव के वशीभूत हो)।

जरदी―पीलापन। दुर्बलता, विरह-पीड़ा।

छरी सी―छली हुई सी। इसका अर्थ 'छड़ी' भी लिया जा सकता है, अर्थात् छड़ी के समान पतली जो दुर्बलता का चिह्न है।

छकी सी―छकी हुई सी (प्रेम में)।

जकी सी―चकपकाई हुई सी।