छोड़ चुकी है। भौतिक दृष्टि से अब उसका कोई नहीं है। उसके अब श्रीकृष्ण ही सहारे हैं।
सबको छोड़कर...यह गति की―लोक और परिवार छोड़कर श्रीकृष्ण की शरण में आई, किन्तु उन्होंने भी उसकी तक कोई सुधि नहीं ली। विरह के कारण दीनहीन दशा।
दीया लेकर मुझको खोजोगे―चारो ओर हैरान होकर ढूँढ़ोगे।
स्नेह लगाकर...सुजान कहलाते हो―सुजान―सज्जन। धोखा देनेवाले को सुजान कहलाने का अधिकार नहीं है।
बकरा जान से गया, पर खाने वाले को स्वाद न मिला―किसी के लिए अपने प्राण दे और वह उसका एहसान तक न माने।
हौस―हवस, लालसा, कामना।
प्रकट होकर संसार...शंकाद्वार खुला रखते हो―अर्थात् ‘चार चवाइन’ ने जो चारों ओर शोर मचा रखा है, मुझे कलंकित कर रखा है, मेरे चरित्र पर सन्देह कर रखा है, उसे क्यों नहीं मुझसे मिलकर, मुझे ग्रहण कर दूर कर देते।
अपने कनौड़े को जगत की कनौड़ी मत बनाओ―अर्थात् मेरे तो केवल तुम्हीं आश्रय हो, संसार के आश्रय में मुझे मत भेजो। मैं केवल तुम्हारी ही कृपा की भूखी हूँ, सासारिक लोगो की कृपा की नहीं।
मझधार में डुबाकर ऊपर से उतराई माँगते हो―मझधार―न तो मैं संसार ही की रही, न तुम्हीं ने मुझे ग्रहण किया। उतराई― महसूल, अर्थात् अधिक से अधिक वेदना और पीड़ा।
जन-कुटुंब से छुड़ाकर...यह कौन बात है―छितर-बितर―दूर दूर करना, विरल करना। एक ओर तो मैं अपने-पराए से अलग हुई, दूसरी ओर तुम भी ग्रहण नहीं करते। इससे मेरा जीवन व्यर्थ हो गया है।
सब की आँखों में हलकी हो गई―निगाहों में गिर गई, अपमानित हुई।
भामिनी तें भौंड़ी करी...कुल तें―अर्थात् सब प्रकार से तुमने मुझे अपमानित किया, मुझे नीचे गिराया, मेरा नाश किया।
भामिनी―स्त्री।
भौंड़ी―भद्दी, मिट्टी।
मानिनी―मान करनेवाली।
मौड़ी―लड़की, अर्थात् सरल स्वभाववाली, मान न कर सकनेवाली।
कौड़ी करी हीरा तें―हीरा मूल्यवान् वस्तु है, कौड़ी का कोई मूल्य नहीं। इसलिए अर्थ हुआ मूल्य का गिरना, अपमानित होना।