लरजना―काँपना, हिलना, दहलना।
श्याम घन―काले बादल, घनश्याम―कृष्ण।
पंडिताइन―ज्ञानी।
कुलकानि―कुल की मर्यादा।
पसारन दीजिए―फैलने दीजिए।
चार चवाइन―गुप्त चुगलखोर, छिपे तौर से बदनामी करनेवाले।
बिधना―बिधाता।
सिस्टाचार―शिष्टाचार।
अनमेख―अनिमेष, टकटकी के साथ।
पेख―देखकर।
छकिसों छयो―तृप्ति के पूर्ण हो गया है।
उड्डगन―तारागण।
मान-कमल―मान रूपी कमल। चन्द्रमा के निकलते की कमल मुरझा जाता है।
गोरज―गौ के खुरों से उड़ी हुई धूल।
पटल―आवरण, पर्दा।
ठयो―ठाना।
जात ही―जाते ही।
झूठन के सिरताज―झूठ बोलनेवालों मे शिरोमणी।
मिथ्यावाद-जहाज―मिथ्यावाद के आश्रय अर्थात् झूठ बोलने वालों मे प्रधान, मिथ्यावाद को फैलानेवाले।
मति परसौ तन...अहो अनूठे―यह तथा ऐसे ही अन्य वाक्य चन्द्रावली की रीतिकालीन नायिका के रूप में चित्रित करते है।
परसौ―स्पर्श करो।
एक मतो...क्यों बनाइए―सूर्य से एक मत क्यों कर लिया है, क्योंकि हे प्रियतम! तुम्हारे रूठने से वह भी रूठ जाता है अर्थात् उदित नही होता और रात्रि की अवधि बढ़ जाने से दुःख भी बढ़ जाता है।
गुदगुदाना...न आवै―उतना ही मजाक अच्छा जिससे किसी को पीड़ा न पहुँचे।
कनौड़ी―मोल ली हुई दासी, आश्रिता, कृतज्ञ।
सुख-भौन―सुख के भवन अर्थात् सुख-पूर्वक।
सबै थल गौन― सब स्थानों में गमन।