यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
श्रीचन्द्रावली
चन्द्रा°--- सखियों! व्यर्थ क्यों यत्न करती हो। मेरे भाग्य ऐसे नहीं हैं कि कोई काम सिद्ध हो।
माधवी--- सखी, हमारे भाग्य तो सीधे हैं। हम अपने भाग्यबल सों सब काम करैंगी।
का°मं°--- सखी, तू व्यर्थ क्यों उदास भई जाय है। जब तक साँसा तब तक आसा।
माधवी--- तौ सखी बस अब यह सलाह पक्की भई। जब तांई काम सिद्ध न होय तब ताई काहुवै खबर न परै।
विला°---नहीं, खबर कैसे परैगी?
का°मं°---(चन्द्रावली का हाथ पकड़कर) लै सखी, अब उठि। चलि हिंडोरें झूलि।
माधवी--- हाँ सखि, अब तौ अनमनोपन छोड़ि।
चन्द्रा°--- सखी, छूटा ही सा है, पर मैं हिंडोरें न झूलूँगी। मेरे तो नेत्र आप ही हिंडोरे झूला करते हैं।
पल-पटुली पै डोर-प्रेम की लगाय चारू आसा ही के खंभ दोय गाड़ कै धरत हैं। झुमका ललित काम पूरन उछाह भरयो लोक बदनामी झूमि झालर झरत हैं॥ 'हरीचंद' आँसू घ्ग नीर बरसाई प्यारे पिया-गुन-गान सो मलार उचरत हैं। मिलन मनोरथ के झोंटन बढ़ाइ सदा विरह-हिंडोरे नैन झूल्योई करत हैं॥ और सखी, मेरा जी हिंडोरे पर और उदास होगा।
माधवी--- तौ सखी, तेरी जो प्रसन्नता होय! हम तौ तेरे सुख की गाहक हैं।
चन्द्रा°--- हा! इन बादलों को देखकर तो और भी जी दुखी होता है।
देखि घन स्याम घनस्यामकी सुरति करि जिय मैं बिरह घटा घहरि-घहरि उठै। त्यौंही इंद्रधनु-बगमाल देखि बनमाल मोतिलर पी की जय लहरि-लहरि उठै॥ 'हरीचंद' मोर-पिक-धुनि सुनि बंसीनाद बाँकी छवि बार-बार छहरि-छहरि उठै॥