श्रीचन्द्रावली
बिना प्रानप्यारे भए दरस तुम्हारे हाय, देखि लीजाै आँखें ये खुली ही रहि जायॅंगी। परन्तु प्यारे, अब इनको दुसरा कौन अच्छा लगेगा जिसे देखकर यह धीरज धरेंगी क्योंकि अमूर्त पीकर फिर छाछ कैसे पीयेंगी। बिछूरे पिय के जग सूनो भयो, अब का करिए कहि पेखिए का। सुख छडिके संगम को तुम्हरे, तुच्छन को अब लेखिए का । 'हरिचनद्र जू' हरिन को व्यवहार कै काॅचन को लै परेखिए का। जिन आॅखिन मे तुब रुप बस्यो, उन आॅखिन सो अब देखिए क॥
इन नेत्र!तुम तो अब बन्द ही रहो। (आंँचल से नेत्र छिपाती है)।
(बनदेवी 'सन्ध्या और वर्ती् है)
सन्ध्या - अरी बनदेवी ! यह कौन आँखिनै मूदिकै अकेली या निरजन बन मे बठी रहि है? बन-अरी का तू याहि नाँये जानै? यह राजा चद्रेभानु की बेटी चन्द्रावली है। वषॊ - तौ यहाँ क्यौ बैठी है? बन - राम जानै।( कुछ सोचकर) अहा जानाे! अरी, यह तो सदा हयाँइ बैठी बक्यौ करैहै और यह तो या बन के स्वमी के पीछेम बवरी होय गइ है।
वषॊ - ताै चलाै यासू क्छू पूछै।
बन -चल।
( तीनाें पास जाती )
बन-(चन्द्रावली के पास कान के पास) अरी मेरी बन की रानी चन्द्रावली!( कुछ ठहकर) राम! सुनैहु नैही है! (और ऊचैं सुर से) अरी मेरी प्यारी साखी चन्द्रावली ! (कुछ ठहकर) हाय! यह तो अपुने साें बाहर होय रही है। अब कहे को सुनैगी।( और ऊचैं सुर से)अरी! सुनै नाँयने री मेरी अलख लडैती चन्द्रावली!
१ हरा कपडा,पत्ते का किरी ट) फुलो की माला। २ गहिर नारंजी कपडा। ३रंग सावला,लाल कपडा।