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अध्याय १९ : असत्य-रूपी जहर


वहां विवाहितके लिए विद्यार्थी-जीवन नहीं होता। हमारे यहां तो प्राचीन समयमें विद्यार्थीका नाम ही ब्रह्मचारी था। बाल-विवाहकी चाल तो इसी जमानेमें पड़ी है। बाल-विवाहका नामनिशान विलायतमें नहीं। इस कारण वहांके भारतीय नवयुवकको बताते यह शरम मालूम होती है कि हमारा विवाह हो गया है। विवाहकी बात छिपानेका दूसरा मतलब यह है कि यदि यह बात मालूम हो जाय तो जिन कुटुंबोंमें वे रहते हैं उनकी युवती लड़कियोंके साथ घूमने-फिरने और आमोद-प्रमोद करनेकी स्वतंत्रता न मिल पावेगी। यह आमोद-प्रमोद बहुतांशमें निर्दोष होता है और खुद मां-बाप ऐसे मेलजोलको पसंद करते हैं। युवक और युवतियोंमें ऐसे सहवासकी आवश्यकता भी समझी जाती है; क्योंकि वहां तो हरेक नवयुवकको अपनी सह-धर्मचारिणी खोज लेनी पड़ती है। इस कारण जो संबंध विलायतमें स्वाभाविक समझा जा सकता है वही यदि हिंदुस्तानके नवयुवक वहां जाकर बांधने लगें तो परिणाम भयंकर हुए बिना नहीं रह सकता। ऐसे कितने ही भीषण परिणाम सुने भी गये हैं। फिर भी इस मोहिनी-मायामें हमारे नवयुवक फंसे हुए थे। जो संबंध अंग्रेजोंके लिए चाहे कितना निर्दोष हो, पर जो हमारे नजदीक सर्वथा त्याज्य है, उनके लिए वे असत्याचरण पसंद करते थे। मैं भी इस जालमें फंस गया। पांच-छः वर्षसे विवाहित होते हुए और एक लड़केका बाप होते हुए भी मैं अपनेको अविवाहित कहते न हिचका। पर इस 'कुंवारेपन' का स्वाद मैं बहुत न चख पाया। मेरे झेंपूपनने और मौनने मुझे बहुत बचाया। भला जब मैं बात ही नहीं कर सकता था, तो कौन लड़की ऐसी फाजिल होती, जो मुझसे बातचीत करने आती? शायद ही कोई लड़की मेरे साथ घूमने निकलती।

मैं जैसा झेंपू था, वैसे ही डरपोक भी था। वेंटनरमें जैसे घरमें रहता था वहां यह रिवाज था कि घरकी लड़की मुझ जैसे अतिथिको साथ घूमने ले जाय। तदनुसार मुझे मकान-मालकिनकी लड़की वेंटनरके आसपास की सुंदर पहाड़ियोंपर घूमने ले गई। मेरी चाल यों धीमी न थी, परंतु उसकी चाल मुझसे भी तेज थी। मैं तो एक तरह उसके पीछे खिंचता-घसिटता जाता था। वह तो रास्तेमें बातोंके फव्वारे उड़ाती चलती और मेरे मुंहसे सिर्फ कभी 'हां' और कभी 'ना' की ध्वनि निकल पड़ती। मैं बहुत-से-बहुत बोलता तो इतना ही कि– 'वाह कैसा