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। ५ इस निमंत्रण-पत्रमें यह भी लिखा गया था कि इसमें खिलाफतके प्रश्नकी चर्चा की जायगी और साथ ही गो-रक्षाके विषयपर भी विचार किया जायगा, एवं यह सुझाया गया था कि गो-रक्षाको साधनेका यह बड़ा अच्छा अवसर है। मुझे यह वाक्य खडका । इस नियंत्रण-पत्रके उत्तरमें मैंने लिखा था कि अनेक यत्न करूंगा और साथ ही यह भी सूचित किया था कि खिलाफत और गोरक्षाको एक साथ मिलाकर उन्हें परस्पर बदलेका सवाल न बनाना के महत्त्वका निर्णय उनके गुणदोषको देखकर करना चाहिए सभा में गया । उपस्थिति अच्छी थी। फिर भी ऐसा दृश्य नहीं था कि हजारों लोग पीछेसे धक्का-मुक्की करते हों। इस सभामें श्रद्धानंदज़ी उपस्थित थे। उनके साथ इस विषयपर मैंने बातचीत कर ली। उन्हें मेरी दलील पसंद आई और उन्होंने कहा कि आप इसे सभामें पेश करें। हकीम साहबके साथ भी मशवरा कर लिया था। मेरा कहना यह था कि दोनों प्रश्नोंका विचार उनके गुण-दोषके अनुसार अलग-अलग होना चाहिए। यदि खिलाफतके प्रश्नमें तथ्य हो, उसमें सरकारकी ओरसे अन्याय होता हो, तो हिदुओंको मुसल- मानोंका साथ देना चाहिए, और इसके साथ गो-रक्षाको नहीं मिला सकते । और यदि हिंदू ऐसी कोई शर्त रक्खें तो वह जेबा नहीं देगी । मुसलमान खिलाफत में मदद लेनके लिए, उसके एवज में, गोवध बंद करें तो इसमें उनकी शोभा नहीं; . एक तो पड़ोसी, फिर एक ही भूमिके रहनेवाले होनेके कारण हिंदुञोंके मनोभावोंका आदर करनेके लिए यदि वे स्वतंत्ररूपसे गोवध बंद करें तो यह उनके लिए शोभाक बात होगी । यह उनका कर्तव्य है; पर यह प्रश्न स्वतंत्र है। यदि वास्तव में यह उनका कर्तव्य है, और इसे वे अपना कर्तव्य समझे भी, तो फिर हिंदू खिलाफत में मदद करें या न करें, पर मुसलमानोंको गोवध बंद कर देना उचित है। इस । तरह दोनों प्रश्नोंपर स्वतंत्र रीतिसे विचार होना चाहिए और इस कारण सभामें तो सिर्फ खिलाफतके विषयपर ही विचार होना उचित है । यह मेरी दलील , थी। सभाको वह पसंद आई। गो-रक्षाके सवालपर सभा में चर्चा न हुई । परंतु मौ० अब्दुल बारी साहबने कहा-- हिंदू लोग चाहे खिलाफतमें मदद करें या न करें, हम चूंकि एक ही मुल्कके हैं, मुसलमानोंको हिंदुअोंके जजवातके खातिर गोकुशी बंद कर देनी चाहिए। और एक बार तो ऐसा ही प्रतीत हुआ, मानो मुसल-