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अध्याय २८ : मृत्यु-शैय्यापर ४५५ २८ मृत्यु-शैय्यापर रंगरूटोंकी भरती करनेमें मेरा शरीर काफी थक गया । उन दिनों केले इत्यादि कुछ फल, भुनी हुई मूंगफलीको कूटकर उसमें गुड़ मिला उसे दो-तीन नींबूके पानीके साथ लिया करता था । बस, यही मेरा भोजन था । मैं यह जानता तो था कि अधिक मूंगफली अपथ्य करती है, फिर भी वह अधिक खाने में आ गई । इससे जरा पेचिश हो गई । मुझे बार-बार आश्रम तो आना ही पड़ता था । मैंने इस पेचिशकी अधिक परवा नहीं की । रातको आश्रम पहुंचा । उन दिनों मैं दवा तो शायद ही कभी लेता था । मुझे विशवास था कि एक बारका खाना बंद कर दूंगा तो तबियत ठीक हो जायगी । दूसरे दिन सुबह कुछ नहीं खाया । इससे दर्द तो लगभग मिट गया । पर मैं जानता था कि मुझे उपवास और करना चाहिए, अथवा यदि कुछ खाना ही हो तो फलका रस जैसी कोई चीज लेनी चाहिए । उस दिन कोई त्यौहार था । मुझे स्मरण है कि मैंने कस्तूरबाईसे कह दिया था कि दोपहरको भी मैं भोजन नहीं करूंगा । पर उसने मुझे ललचाया और मैं भी लालचमें आ गया । उस समय मैं किसी भी पशुका दूध नहीं पीता था । इसलिए घी और मट्ठा भी मेरे लिए त्याज्य ही था । अतः मेरे लिए तेलमें गेहूंका दलिया बनाया गया । वह और साबत मूंग भी मेरे लिए खास तौरपर रक्खे हुए हैं, ऐसा मुझसे कहा गया । बस, स्वादने मुझे फंसा लिया । फिर भी इच्छा तो यही थी कि कस्तूरबाईकी बात रखनेके लिए थोड़ा-सा खा लूंगा । इससे स्वाद भी आ जायगा और शरीरकी रक्षा भी हो जायगी । पर शैतान तो मौकेकी ताकमें ही बैठा था । मैंने भोजन शुरू किया और थोड़ा खानेके बदले डटकर पेटभर खा लिया । जायका तो खूब रहा, पर साथ ही जमराजको निमंत्रण भी दे दिया ।खाये एक घंटा भी न हुआ कि पेटमें जोरोंसे दर्द शुरू हुश्रा। रातको नड़ियाद तो वापस जाना ही था । साबरमती स्टेशनतक पैदल गया । पर वह सवा मीलका रास्ता कटना मुश्किल हो गया । अहमदाबादके