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अध्याय २४ : ‘प्याज-चोर' ४४३ करनेका ढंग बतलाना त्र्प्रौर गले उतारना लगभग त्र्प्रशक्य-सा ही लगता था । त्र्प्रफसरोंका डर छोड़नेके बाद उनके किये अमानोंका बदला लेनेकी इच्छा किसे न होती ? मगर फिर भी सत्याग्रहीके लिए त्र्प्रविनयी होना तो दूधमें जहर पड़नेके समान है। पीछेसे मैंने यह और अधिक समझा कि पाटीदार त्र्प्रभी विनयका पूरा पाठ नहीं पढ़ सके थे । त्र्प्रनुभवसे देखता हूं कि विनय सत्याग्रहका सबसे कठिन त्र्प्रंश है । विनयका अर्थ यहांपर केवल मानके साथ वचन बोलनाभर ही नहीं हैं । विनय है विरोधीके प्रति भी मनमें आदर रखना, सरल भाव, उसके हितकी इच्छा और उसीके त्र्प्रनुसार बर्ताव रखना । शुरूके दिनोंमें लोगोंमें खूब हिम्मत दिखाई पड़ती थी । शुरू-शुरूमें सरकारी कार्रवाइयां भी नर्म होती थी; किंतु जैसे-जैसे लोगोंकी दृढ़ता बढ़ती हुई जान पड़ी, वैसे-वैसे सरकार भी त्र्प्रधिक उग्र उपाय करने लगी । जब्तीवालोंने लोगोंके ढोर बेच दिये, घरमेंसे मनचाहा माल उठा ले गये । चौथाई जुरमानेके नोटिस निकले । किसी-किसी गांवकी सारी फसल जव्त हो गई । त्र्प्रब लोग घबराये । कुछ लोगोंने लगान दे दिया । दूसरे यह चाहने लगे कि अगर सरकारी अफसर ही हमारा कुछ माल जब्त करके लगान त्र्प्रदा कर लें तो हम सस्ते ही छूटें । पर कितने ऐसे भी निकले, जो मरते दमतक टेकपर त्र्प्रड़े रहनेवाले थे । इतने हीमें शंकरलाल परीखकी जमीनपर रहनेवाले उनके त्र्प्रादमीने उनका लगान भर दिया । इससे हाहाकार हो गया । शंकरलाल परीखने वह जमीन देशको त्र्प्रर्पण करके त्र्प्रपने त्र्प्रादमीकी भूलका प्रायरिचत्त किया । उनकी प्रतिष्ठा त्र्प्रक्षत रही । दूसरोंके लिए यह उदाहरण हुआ। । एक त्र्प्रनुचित रूपसे जब्त किये गये खेतमें प्याजकी फसल तैयार थी । मैंने डरे हुए लोगोंको उत्साह देनेके लिए मोहनलाल पंडयाके नेतृत्वमें उस खेतकी फसल काट लेनेकी सलाह दी । मेरी दृष्टिमें उसमें कानूनका भंग नहीं होता था । मैंने समझाया, त्र्प्रगर होता भी हो तो भी जरासे लगानके लिए सारी खड़ी फसलकी जब्ती कानून-सम्मत होनेपर भी नीति-विरुद्ध है त्र्प्रौर सरासर लूट हँ तथा इस तरह की गई जब्तीका त्र्प्रनादर करना धर्म है । ऐसा करनेमें जेल जाने तथा सजा पानेकी जो जोखिम थी सो लोगोंको मैंने स्पष्ट रूपसे बतला दी थी । मोहनलाल पंड्याको तो यही चाहिए था । उन्हें यह रुचिकर नहीं लग रहा था कि सत्याग्रह