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अध्याय ३८ लड़ाई भाग ३५३ जिन दिनों हमने यह यात्रा प्रारंभ की, पूर्वोक्त उपवासोंको पूरा किये मुझे बहुत समय नहीं बीता था। अभी मुझमें पूरी ताकत नहीं आई थी । जहाजमें डेकपर खूब घूमकर काफी खानेका और उसे पचानेका यत्न करता है पर ज्यों-ज्यों अधिक जुने लगा त्यों-त्यों पिंडलियोंमें ज्यादा दर्द होने लगा। विलायत पहुंचने के बाद तो उलटा यह दर्द और बढ़ गया। वहां डाक्टर जीवराज मेहतासे मुलाकात हो गई थी। उपवास और इस दर्दका इतिहास सुनकर उन्होंने कहा कि “यदि आप थोड़े समयतक आराम नहीं करेंगे तो आपके पैरोंके सदके लिए सुन्न पड़ जाने का अंदेशा है। अब जाकर मुझे पता लगा कि बहुत दिनोंके उपवास गई ताकत जल्दी लानेका या बहुत खानेका लोभ नहीं रखना चाहिए । उपवास करने की अपेक्षा छोड़ते समय अधिक सावधान रहना पड़ता है और शायद इसमें अधिक संयम भी होता है ।। मदीरामें हमें समाचार मिले कि लड़ाई अब छिड़ने ही वाली हैं । इंग्लैंडकी खाड़ी में पहुंचते-पहुंचते खबर मिली कि लड़ाई शुरू हो गई और हम रोक लिये गये । पानी में जगह-जगह गुप्त मार्ग बनाये गये थे और उनसेसे होकर हमें साउदेम्प्टन पहुंचते हुए एक-दो दिनकी देरी हो गई। युद्धकी घोषणा ४ अगस्तको हुई; हम लोग ६ अगस्तको विलायत पहुंचे ।। लड़ाईमें भाग . दिलायत पहुंचनेपर खबर मिली कि गोखले तो पेरिसमें रह गये हैं, पेरिसके साथ आवागमनका संबंध बंद हो गया है और यह नहीं कहा जा सकता कि वह कब आयेंगे । गोखले अपने स्वास्थ्य-तुबारके लिए फ्रांस गये थे; किंतु बीचमें युद्ध छिड़ जानेसे वहीं अटक रहे । उनसे मिले बिना मुझे देश जाना नहीं था और वह कब अावेंगे, यह कोई कह नहीं सकता था। अब सवाल यह खड़ा हुआ कि इस दरमियान करें क्या ? इस लड़ाईके संबंध में मेरा धर्म क्या है ? जेलके मेरे साथी और सत्याग्रही सोराबजी अडाजणिया विलायतमें बैरिस्टरीका अध्ययन कर रहे थे। सोराबजी को एक श्रेष्ठ सत्याग्रही