पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/३७

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१९
अध्याय ६ : दु:खद प्रसंग-१

हैं उसे दूसरी भाषाओं का ज्ञान सुगम हो जाता है। सच पूछिए तो हिंदी, गुजराती, संस्कृत ये एक भाषा मानी जा सकती हैं। यही फारसी और अरबी के लिए कह सकते हैं। फारसी यद्यपि संस्कृतसे मिलती-जुलती है, और अरबी हिब्रुसे; तथापि दोनों भाषाएं इस्लामके प्रादुर्भावके पश्चात् फली-फूली हैं, इसलिए दोनोंमें निकट संबंध है। उर्दू को मैंने पृथक् भाषा नहीं माना, क्योंकि उसके व्याकरणका समावेश हिंदीमें होता हैं। अलबत्ता उसके शब्द फारसी और अरबी ही हैं। ऊंचे दरजेकी उर्दू जाननेके लिए अरबी और फारसी जानना आवश्यक होता है, जैसा कि उच्च कोटिकी गुजराती, हिंदी, बंगला, मराठी जाननेवालेके लिए संस्कृत जानना ज़रूरी है।


दुःखद प्रसंग-१

मैं पहले कह आया हूं कि हाई स्कूलमें मेरी बहुत कम लोगोंसे निजी मित्रता थी। यों जिन्हें घनिष्ट कह सकते हैं ऐसे मित्र तो मेरे कुल दो ही थे, सो भी जुदा-जुदा समयपर। उनमें एककी मित्रता अधिक समय तक न निभी, हालांकि मैंने अपनी तरफसे उसे नहीं तोड़ा। दूसरेसे मित्रता करनेके कारण पहले मित्रने मेरा साथ छोड़ दिया। पर वह दूसरी मित्रता मेरे जीवनका एक दुःखद प्रकरण है। यह संग बहुत दिनोंतक चला। एक सुधारककी दृष्टि रखकर मैने यह मित्रता की थी। उस व्यक्तिकी मित्रता पहले मेरे मंझले भाईके साथ थी। वह उनका सहपाठी था। मैं उसके कई ऐबोंको जान पाया था, परंतु मैंने उसे अपना वफादार साथी मान लिया था। मेरी माताजी, बड़े भाई और धर्मपत्नी तीनोंको उसकी सोहबत बुरी मालूम पड़ती थी। पत्नीकी चेतावनीपर तो मैं-अभिमानी पति-क्यों ध्यान देने लगा? हां, माताकी बातको तो मैं टाल ही नहीं सकता था। बड़े भाईकी भी माननी पड़ती। परंतु मैंने उन्हें यों समझा दिया-"आप उसकी जो बुराइयां बताते हैं, उन्हें तो में जानता हूं। पर उसके गुणोंको आप नहीं जानते। मुझे वह खराब रास्ते नहीं लेजा सकता; क्योंकि मैंने उसके साथ संबंध केवल उसे सुधारनेके लिए बांधा है। मुझे विश्वास है कि यदि वह सुधर