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૨૭૨ आत्म-कथा : भाग ४ परंतु यह याद रखना चाहिए कि सभी दृष्टिबिंदु एक ही समय और एक ही मुकामपर सही नहीं होते। फिर कितनी ही पुस्तकों में विक्रीके और नामके लालचकी बुराई भी रहती है। इसलिए जो सज्जद इस पुस्तकको पढ़ना चाहें वे इसे विवेकपूर्वक पढ़े और यदि कोई प्रयोग करना चाहें तो किसी अनुभवीकी सलाह करें, या धीरज रखकर विशेष अभ्यास करनेके बाद प्रयोगकी शुरुआत करें । एक चेतावनी अपनी इस कथाके धारा-प्रवाहको फिलहाल एक अध्यायतक रोककर पहले इसी विषयपर कुछ और रोशनी डालनेकी आवश्यकता है ।। । पिछले अध्यायमें मिट्टीके प्रयोगोंके संबंधमें मैंने जो कुछ लिखा है उसी तरह भोजनके भी प्रयोग मैने किये हैं। इसलिए उनके संबंथमें भी यहां कुछ लिख डालना उचित है । इस विषयको और जो-कुछ बातें हैं वे प्रसंग-प्रसंगपर सामने आती जावेगी ।। | भोजन-संबंधी मेरे प्रयोगों और विचारोंका सविस्तार वर्णन यहां नहीं किया जा सकता ; क्योंकि इस विषयपर मैंने अपनी आरोग्य संबंधी सामान्यज्ञान नामक पुस्तकमें विस्तारपूर्वक लिखा है। यह पुस्तक मैने ‘इंडियन ओपीनियन के लिए लिखी थी । मेरी छोटी-छोटी पुस्तिकाओंमें यह पुस्तक पश्चिममें तथा यहां भी सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई है। इसका कारण में आजतक नहीं समझ सका हैं । यह पुस्तक महत्व 'इंडियन ओपनियन के पाठकोंके लिए ही लिखी गई थी। परंतु उसे पढ़कर बहुतेरे भाईबहनोंने अपने जीवनमें परिवर्तन किया है और मेरे साथ चिट्ठी-पत्री भी की है, और कर रहे हैं। इसलिए उसके संबंधमें यहां कुछ लिखनेकी आवश्यकता पैदा हो गई है । इसका कारण यह है कि यद्यपि उसमें लिखे अपने विचारोंको बदलनेकी अवश्यकता मुझे अभीतक नहीं दिखाई पड़ी है, फिर भी अपने प्राचारमें मैंने बहुत-कुछ परिवर्तन कर लिया है, जिसे इस पुस्तकके बहुतेरे पढ़ने वाले नहीं जानते और यह आवश्यक हैं कि वे जल्दी जान लें ।