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अध्याय १९ : गोखले के साथ एक मसि----३

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गोखलेके साथ एक मास----३

काली-माताके निमित्त यह जो विकराल यज्ञ जो रहा है, उसको देखकर बंगाली-जीवनका अध्ययन करनेकी मेरी इच्छा तीव्र हुई । उसमें ब्रह्म-समाजके विषयमे तो मैंने ठीक तौरपर साहित्य पढ़ा था और सुना भी था । प्रतापचंद्र मजूमदारके जीवन-वृत्तांतसे मैं थोड़ा-बहुत परिचित था। उनके व्याख्यान सुने थे। उनका लिखा केशवचंद्र सेनका जीवन-चरित्र लेकर बड़े चावसे पढ़ा और साधारण ब्रह्म-समाज तथा आदि ब्रह्म-समाजका भेद मालूम किया। पंडित शिवनाथ शास्त्रीके दर्शन किये। महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुरके दर्शन करने प्रो० काथवटे और मैं गये। पर उस समय वह किसीसे मिलते-जुलते न थे। अतएव हम उनके दर्शन न कर सके। उनके यहां ब्रह्मसमाजका उत्सव था। उसमें हम भी निमंत्रित किये गये थे ! वहां ऊंचे दर्जेका बंगाली संगीत सुना। तभीसे बंगाली संगीतसे मेरा अनुराग हो गया।

ब्रह्म-समाजका, जितना हो सकता था, अध्ययन करनेके बाद मला यह कैसे हो सकता था कि स्वामी विवेकानंदके दर्शन न करता ? बड़ी उत्सुकताके साथ बेलूर-मठ तक लगभग पैदल गया। कितना पैदल चला था, यह अव याद नहीं पड़ता है । मठका एकांत स्थान मुझे बड़ा सुहावना मालूम हुआ। वहां जानेपर मालूम हुआ कि स्वामीजी बीमार हैं, उनसे मुलाकात नहीं हो सकती और वह अपने कलकत्तेवाले घरमें हैं। यह समाचार सुनकर में निराश हुआ। भगिनी निवेदिताके घरका पता पूछा । चौरंगीके एक महलमें उनके दर्शन हुए । उनकी शानको देखकर में भौंचक्का रह गया। बातचीत में भी हमारी पटरी ज्यादा न बैठी। मैंने गोखलसे इसका जिक्र किया तो उन्होंने कहा--' -"वह देवी बड़ी तेज है, तुम्हारी उनकी पटरी बैठनी मुश्किल है ।

एक बार और उनसे मेरी भेंट पेस्तनजी पादशाहके यहां हुई थी। जिस समय में वहां पहुंचा, वह पेस्तनजीकी वृद्धा माताको उपदेश दे रही थीं, इसलिए मैं अनायास उनका दुभाषिया बन गया। यद्यपि भगिनीका और मेरा मेल