पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/२१५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९५
अध्याय ३ : कसौटी


गया तब उन्होंने भीड़ से कहा--“लो, तुम्हारा शिकार तो इस दुकान से होकर सही-सलामत बाहर सटक गया । ” यह सुनकर भीड़ में से कुछ लोग बिगड़े, कुछ हंसे और बहुतेरों ने तो उनकी बात ही न मानी ।

“तो तुममें से कोई जाकर अंदर देख ले । अगर गांधी यहां मिल जाय तो उसे मैं तुम्हारे हवाले कर दूंगा, न मिले तो तुमको अपने-अपने घर चले जाना चाहिए । मुझे इतना तो विश्वास है कि तुम पारसी रुस्तम जी के मकान को न .जलाओगे और गांधी के बाल-बच्चों को नुकसान न पहुंचाओगे । ”सुपरिन्टेंडेंट ने कहा ।

भीड़ ने प्रतिनिधि चुने । प्रतिनिधियों ने भीड़ को निराशा-जनक समाचार सुनाये । सब सुपरिन्टेंडेंट अलेक्जेंडर की समय-सूचकता और चतुराई की स्तुति करते हुए, और कुछ लोग मन-ही-मन कुढ़ते हुए, घर चले गये ।

स्वर्गीय मि० चेम्बरलेन ने तार दिया कि गांधी पर हमला करने वालों पर मुकदमा चलाया जाय और ऐसा किया जाय कि गांधी को इन्साफ मिले । मि० ऐस्कंब ने मुझे बुलाया । मुझे जो चोटें पहुंची थीं, उसके लिए दुःख प्रदर्शित किया और कहा--“आप यह तो अवश्य मानेंगे कि आपको जरा-भी कष्ट पहुंचने से मुझे खुशी नहीं हो सकती । मि० लाटन की सलाह मानकर आप ने जो उतर जाने का साहस किया, उसका आपको हक था; पर यदि मेरे संदेश के अनुसार आपने किया होता तो यह दुःखद घटना न हुई होती । अब यदि आप आक्रमणकारियों को पहचान सकें तो मैं उन्हें गिरफ्तार कर के मुकदमा चलाने के लिए तैयार हूं । मि० चेम्बरलेन भी ऐसा ही चाहते हैं । ”

मैंने उत्तर दिया-- “मैं किसी पर मुकदमा चलाना नहीं चाहता । हमलाइयों मे से एक-दो को मैं पहचान भी लूं तो उन्हें सजा कराने से मुझे क्या लाभ ? फिर मैं तो उन्हें दोषी भी नहीं मानता हूं; क्योंकि उन बेचारों को तो यह कहा गया कि हिंदुस्तान में मैंने नेटाल के गोरों की भरपेट और बढ़ा-चढ़ाकर निंदा की है । इस बातपर यदि वे विश्वास कर लें और बिगड़ पड़े तो इसमें आश्चर्य की कौन बात है ? कुसूर तो ऊपर के लोगों का, और मुझे कहने दें तो आपका, माना जा सकता है । आप लोगों को ठीक सलाह दे सकते थे; पर आपने रॉयटर के तार पर विश्वास किया और कल्पना कर ली कि मैने अत्युक्ति से काम लिया होगा । मैं