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अध्याय १८ : वर्ण-द्वेष


वकील-सभाने कमर कसी थी; किन्तु अदालत ने इस अवसर पर अपने चिह्न की लाज रख ली ।

मुझे वकालत की सनद लेनी थी। मेरे पास बंबई हाईकोर्ट का तो प्रमाण। था; पर विलायत का प्रमाण-पत्र बंबई-अदालत के दफ्तर में था; वकालत की मंजुरी की दरख्वास्त के साथ नेकचलनी के दो प्रमाणपत्र को आवश्यकता समझी जाती थी। मैंने सोचा कि यदि ये प्रमाण पत्र गोरे लोगों के हों तो ठीक हो ! इसलिए अब्दुल्ला सेठ की मार्फत मेरे संपर्क में आये दो प्रसिद्ध गोरे व्यापारियों के प्रमाण-पत्र लिये । दरख्वास्त किसी वकील की मार्फत दी जानी चाहिए। मामूली कायदा यह था कि ऐसी दरख्वास्त एटन-जनरल बिना फीस के पेश करता है। मि० एस्कंब एटन-जनरल थे । हम जानते ही हैं कि अब्दुल्ला सेठ के वह वकील थे । अतएव उनसे मिला और उन्होंने खुशी मेरी दरख्वास्त पेश करना मंजूर कर लिया ।

इतने अचानक वकील-सभा को तरफ से मुझे नोटिस मिला। नोटिस मेरे वकालत करने के खिलाफ विरोध की आवाज उठाई गई थी। इसमें एक कारण यह बताया गया था कि मैंने वकालत की दरख्वास्त के साथ असल प्रमाण-पत्र नहीं पेश किया था; परंतु विरोध की असली बात यह थी कि जिस समय अदालत को वकीलों को दाखिल करने के संबंध में नियम बने, उस समय किसी ने भी यह खयाल न किया होगा कि वकालत के लिए कोई काला या पीला अदमी आकर दरख्वास्त देगा। नेटाल गोरों के साहस का फल है और इसलिए यहां गोरों की प्रधानता रहनी चाहिए । उनको भय हुआ कि यदि काले वकील भी अदालत में आने लगेंगे तो धीरे-धीरे गोरों की प्रवनती चली जायगी और उनकी रक्षा की दीवारें टूट जायंगी ।

इस विरोध के समर्थन के लिए वकील-सभाने एक प्रख्यात वकील को अपनी तरफ से खड़ा किया था। इस वकील का भी संबंध दादा अब्दुल्ला से था । उनकी मार्फत उन्होंने मुझे बुलाया । उन्होंने शुद्ध-भावना से मुझसे बातचीत की । मेरा इतिहास पूछा। मैंने सब कह सुनाया । तब वह बोले

“मुझे आपके खिलाफ कुछ नहीं कहना । मुझे यह भय था कि आप कोई यहीं के पैदा हुए धूर्त आदमी होंगे। फिर आपके पास असली प्रमाण-पत्र नहीं हैं, इससे मैरे शक को और पुष्टि मिल गई । और ऐसे लोग भी होते हैं, जो दूसरों के