पर मैंने कुछ तो हठमें, कुछ मदमें, और कुछ ५ शिलिंग बचानेकी नीयतसे इन्कार कर दिया।
अब्दुल्ला सेठने मुझे चेताया—"देखना यह मुल्क और है, हिंदुस्तान नहीं। खुदाकी मेहरबानी हैं, आप पैसे का ख्याल न करना, अपने आरामका सब इंतजाम कर लेना।"
मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि आप मेरी चिंता न कीजिए।
नेटालकी राजधानी मेरित्सबर्गमें ट्रेन कोई ९ बजे पहुंची। यहां सोनेवालोंको बिछौने दिये जाते थे। एक रेलवेके नौकरने आकर पूछा—"आप बिछौना चाहते हैं।"
मैंने कहा—"मेरे पास एक बिछौना है।"
वह चला गया। इस बीच एक यात्री आया। उसने मेरी ओर देखा। मुझे 'काला आदमी' देखकर चकराया। बाहर गया और एक-दो कर्मचारियोंको लेकर आया। किसीने मुझसे कुछ न कहा। अंतको एक अफसर आया। उसने कहा—"चलो, तुमको दूसरे डिब्बेमें जाना होगा।"
मैंने कहा—"पर मेरे पास पहले दर्जेका टिकट है।"
उसने उत्तर दिया—"परवा नहीं, मैं तुमसे कहता हूं कि तुम्हें आखिरी डिब्बेमें बैठना होगा।"
"मैं कहता हूं कि मैं डरबनसे इसी डिब्बेमें बिठाया गया हूं और इसीमें जाना चाहता हूं।"
अफसर बोला—"यह नहीं हो सकता। तुम्हें उतरना होगा, नहीं तो सिपाही आकर उतार देगा।"
मैंने कहा—"तो अच्छा, सिपाही आकर भले ही मुझे उतारे, मैं अपने आप न उतरूंगा।"
सिपाही आया। उसने हाथ पकड़ा और धक्का मार कर मुझे नीचे गिरा दिया। मेरा सामान नीचे उतार लिया। मैंने दूसरे डिब्बेमें जाने से इन्कार किया। गाड़ी चल दी। मैं वेटिंग-रूममें जा बैठा। हैंडबेग अपने साथ रक्खा। दूसरे सामानको मैने हाथ न लगाया। रेलवेवालोंने सामान कहीं रखवा दिया।
मौसम जाड़े का था। दक्षिण अफ्रीकामें ऊंची जगहोंपर बड़े जोरका