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अध्याय ७ : कुछ अनुभव


वे अपनेको 'अरब' कहते थे। दूसरा गिरोह था हिंदू या पारसी कारकुन-पेशा लोगोंका। हिंदू-कारकुन अधरमें लटकता था। कोई अपनेको 'अरब'में शामिल कर लेता। पारसी अपनेको परशियन कहते। तीनों एक-दूसरेसे सामाजिक संबंध तो रखते थे। एक चौथा और बड़ा समूह था तामिल, तेलगू और उत्तरी भारतके गिरमिटिया अथवा गिरमिटयुक्त भारतीयोंका। गिरमिट 'एग्रिमेंट' का बिगड़ा हुआ रूप है। इसका अर्थ है इकरारनामा, जिसके द्वारा गरीब हिंदुस्तानी पांच सालकी मजूरी करनेकी शर्तपर नेटाल जाते थे। गिरमिटसे गिरमिटिया बना है। इस समुदायके साथ औरोंका व्यवहार काम-संबंधी ही रहता था। इन गिरमिटियोंको अंग्रेज कुली कहते। कुलीकी जगह 'सामी' भी कहते। सामी एक प्रत्यय है, जो बहुतेरे तामिल नामोंके अंतमें लगता है। 'सामी'का अर्थ है स्वामी। स्वामीका अर्थ हुआ पति। अतएव 'सामी' शब्दपर जब कोई भारतीय बिगड़ पड़ता, और यदि उसकी हिम्मत पड़ी, तो उस अंग्रेजसे कहता— 'तुम मुझे सामी तो कहते हो; पर जानते हो सामी के माने क्या होते हैं? सामी 'पति' को कहते हैं, क्या मैं तुम्हारा पति हूं?' यह सुनकर कोई अंग्रेज शरमिंदा हो जाता, कोई खीझ उठता और ज्यादा गालियां देने लगता और मौका पड़े तो मार भी बैठता; क्योंकि उनके नजदीक तो 'सामी' शब्द घृणा-सूचक होता था— उसका अर्थ 'पति' करना मानों उसका अपमान करना था।

इस कारण मुझे वे कुली-बैरिस्टर कहते। व्यापारी कुली-व्यापारी कहलाते। कुलीका मूल अर्थ 'मजूर' तो एक ओर रह गया। व्यापारी 'कुली' शब्दसे चिढ़कर कहता— 'मैं कुली नहीं, मैं तो अरब हूं;' अथवा 'मैं व्यापारी हूं।' कोई-कोई विनयशील अंग्रेज यह सुनकर माफी मांग लेते।

ऐसी स्थितिमें पगड़ी पहननेका सवाल विकट हो गया। पगड़ी उतार देनेका अर्थ था मान-भंग सहन करना। सो मैंने तो यह तरकीब सोची कि हिंदुस्तानी पगड़ीको उतारकर अंग्रेजी टोप पहना करूं, जिससे उसे उतारनेमें मान-भंगका भी सवाल न रह जाय और मैं इस झगड़ेसे भी बच जाऊं।

पर अब्दुल्ला सेठको यह तरकीब पसंद न हुई। उन्होंने कहा— "यदि आप इस समय ऐसा परिवर्तन करेंगे तो उसका उलटा अर्थ होगा। जो लोग देशी पगड़ी पहने रहना चाहते होंगे उनकी स्थिति विषम हो जायगी। फिर