पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१०७

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
८९
अध्याय २५ : मेरी दुविधा


मैंने समय मिलते ही पहले उसीको पढ़ डालनेका निश्चय कर लिया था। दक्षिण अफ्रीकामें जाकर मेरा यह मनोरथ पूरा हुआ।

यों निराशामें आशाका थोड़ा-सा मिश्रण लेकर मैं कांपते पैरोंसे 'आसाम' स्टीमरसे बम्बई बन्दरपर उतरा। बन्दरपर समुद्र क्षुब्ध था। लॉंचमें बैठकर किनारेपर पहुंचना था।




भाग पहला समाप्‍त