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Act VI.]
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SAKUNTALA.

के चेले गये और शकुन्तला अपने भाग्य की निन्दा करती हुई वांह उठाकर रोने लगी . . . .॥

दुष्य॰। तब क्या हुआ॥

पुरो॰। तब अप्सरातीर्थ के निकट स्त्री के रूप में कुछ बिजली सी 101 आई। सो शकुन्तला को उटा छाती से लगाकर ले गई॥

(सब आर्य करने लगे)

दुष्य॰। मुझे पहले ही102 भ्यास गई थी कि इस में कुछ छल है। सो ई हुआ103 अब इस बात में तर्क करना निष्फल है। तुम विश्राम करो॥

पुरो॰। महाराज की जय रहे॥ (बाहर गया)

दुष्य॰। हे द्वार पालिनी इस समय मेरा चित्त बहुत व्याकुल हो रहा है। आ तू। मुझे शयनस्थान को गैल बता

द्वारपालिनी। महाराज इस मार्ग आइये॥

दुष्य॰। (चलता हुआ आप ही आप) मैं बहुतेरा सुध करता हूं परंतु ध्यान में नहीं आता कि मुनिकन्या से कब मेरा विवाह हुआ। और हृदय उकताकर ऐसा हो गया है कि इस स्त्री के वचनों को प्रतीति करना चाहता है॥

 

 

अङ्क ९
स्थान एक गली॥
(कोतवाल और दो पियादे एक मनुष्य को बांधे हुए लाए)

पहला पियादा। (बंधुए को पीटता हुआ) अरे कुम्भिलक बतला। यह अंगूठी जिस के हीरे1 पर राजा का नाम खुदा है तेरे हाथ2 कहां से आई॥

कुम्भिलक। (कांपता हुआ) मुझे मारो मत। मेरा ऐसा अपराध नहीं है जैसा तुम समझे हो॥

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