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[ACT VI.
SAKUNTALA.


क्या होगा¹07 । और कदाचित आप प्रसन्न ही हुए हो¹08 तो यह आशीवाद दो कि राजाओं को बुद्धि प्रजा का सुख बढ़ाने में प्रकृत रहे । और वेदपाठी सरस्वती¹00 के पूजन में चिन्न लगावें । और नीलकण्ठ लोहितजदा स्वयंभू सदाशिव¹¹0 मुझे इस संसार के आवागमन से छुड़ावें¹¹¹ ॥

कश्यय । तथास्त¹¹² ।।

(सब बाहर गये)

॥ समाप्तम्¹¹³ ॥




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