पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/८५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(७५)

________________

इसके उपरान्त दूसरे समय में उयुक्त सूचना के अनुसार कवि ने इशावतार की कथा कही है और उसके अंत में यश्च कर कि राम और कृष्ण की कीति अनन्त है, उसका कथन करने में अधिक सथ लगेरा, श्रायु थोड़ी है और चौहान का भार सिर पर हैं--- राम' किसन किती सरस ! कहूर्त लगै बहु बीर ! छुन्छ अब कवि चंद की । सिर चहुश्राना र ।।५८५, उसने तीसरे समय में दिल्ली किल्ली कथा से चौहान का वृत्तान्त फिर मारम्भ किया है और अन्त में स्व का सुफल तथा दिल्ली-कथा कहकर, श्री पृथ्वीराज के गुण और चाव वर्णन की सूचना देकर-.. सुपन सुफल दिल्ली कथा । कही। चंद बरदाय ।। अब अग्रो करि उच्चरों । पिथ्थ अंकुर गुन चाय ।।५८, चौथे समय में लोहाना आजानुबाहु के साहस और पौरुष की कथा इक्क समय प्रिथिराज राज ढढा सामंतह' से प्रारम्भ कर दी है तथा अंतु में झागामी कथा की सूचना न देकर पाँचवाँ समय भलाग्य भीमदेव और पृथ्वीराज की शत्रुता के कारण की जिज्ञासा करने वाली शुक्र को शुक द्वारा उत्तर रूप में झारम्भ किया है । सुकी कहै सुक संभरौ । कहीँ कथा प्रति प्रनि ।। | पृथु भो भीमरा पडु । क्रिम हुअ बैर विनान }}, इसके अंत में संभरेश चौहान को अजमेर की भूमि में रहकर कृष्ण सद्दश अहर्निशि लीला करते हुए बतलाकर छठे समय में इस बात को युक्ति से जोड़ते हुए पृथ्वीराज की चौदह वर्ष की कुमारावस्था के एक अन्वेंट में वीरों के बशीकरण की कथा कही गई है । कुअरप्पन प्रथिराज ! वर्ष विय सपत समर तन ।। सातवें समय में ११२९ बदी फाल्गुन चतुर्दशी सोमवार को समिश्वर द्वारा किये गये शिवरात्रि-व्रत का उल्लेख करते हुए, पृथ्वी पर मोहित होकर मंडोवर के नाहर राय के अपनी कन्यः उन्हें देने की बात' कहकर पलटने के फलस्वरूप युद्ध तथा चौहान की विजय का वर्णन कवि कर डालता है। अठवें समय में मंडोवर विजय सोमेश्वर द्वारा युद्ध की लूट का विभाजन करके मेवाती भुल का वृत्तान्त आ जाता है । ' अति उत्कंठा पैदा करने वाली संभरैश और री सुलतान के आदि वैर की कथा के मिस नयाँ समय प्रारम्भ होता है