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वार के एक बार में । उभार=उकाल देना, विराना, तितर बितर करना । अषार=अखाड़ा [ यहाँ युद्धभूमि से तात्पर्य हैं। सलमल्ल =योद्धा । एक उझार= एक उझाल अर्थात् र ६ । सयौ - पंजाबी सञ्झ=साझा ] झाड कर एक स्थान पर कर देगा, इझ कर देना ! इक र= एक (तलवार के) बार में; एक बेर । तर य = तना, बनना ( था ) तरा, अच्छा । हुस्नर = कठिन । रुपैं = रूप । दूजें दूसरी बार । उभार यौ='3ाई, भारी ।। नोट---डाँ होर्नले प्रस्तुत रूपक का अंतिम दो क्लिों का अर्थ इसे प्रकार करते हैं--- Like it wrestler in the zena lie with one stroke scattered (his enemies), with another sweep he gathered them; at one moment with difficulty le escaped ( his enemy's stroke), at the next he again uplifter his sword." p. 52, कुंडल ते झारि उज्झरि बर, फेरि ऊम्म कधि कळ् । नैन बन अंकुरि वहुरि (प), सुन लुट्टै यहि हथ ।। तन तु वह हथ, फेरि बर वीर सवीरह। मरल चित्त सिंच, जनम तिन जी जंजीरह3 ।। हथ बथ अहित फिर, तक्के र बहु बेगा । लंग लैगरि राय, बीर उच्चाइ तेराई ।। ॐ ११६ } रू ८१ ।। भावार्थ-रू.० ८१-लिंग लंगरीय शत्रुओं को अपनी 5 (अछ, मज़बूत और तेज़) तलवार भाई करके ( या तलवार के ३र करके ) उकल रहा था । कवि-उसकी फिर उष कहता हैं । (कुछ समय बाद तेरी ) ने मैं एक बाण घुस गया और शरीर से वायाँ हाथ कट गया ( था----रीर का बायाँ हाथ टूट गया ) । ( यद्यदि ) शरीर से बायाँ हाथ कट गया फिर भी उसका वीरोचित उत्साह कम नहीं हुया । उसने मन में विचार कि (युद्ध न में) मृत्यु होने से ( फिर ) जन्म लेने का बंधन टूट जावेगा । उसका हाथ और कभर ( शा.बथ्थ-वक्षस्थल ) वायरल हो चुके थे फिर भी उसने ( लंबा(१) कृ०--कैरि उपम; ०---फिर उपभा (२) ॐ ॐ के---तिन; ल० --- ज़िन (३) ना---ॐ जीरह (४) नाकेर ।। (प) पाठ अन्य प्रतियों में नहीं है केवल हा ने दिया है ।