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( ६५ ) नोट:-प्रस्तुत कवित्त की अंतिम दो पंक्तियों का अर्थ ह्योनले महोदय ने इस प्रकार लिखा है “The brave warrior fell in this brave fight, reeling under the repeated strokes of the sword (of his enemy). Tartar Klan in frot him roared like a lion over his success, so loudly that the heavens shook," p. 46. कृवित्त घोलि पुग्न नरसिंध, पोज्झि धलः सीसह झारिय । तुटि धर धरनि परंत, परत संभरि कट्टारिय ।। चरन अंत उरत, वीर कुरंभ करारौ । तेग थाइ २ बुक्कत, झरी झर लोह सँसारौ ।।। चलि गयो न क्रमन, क्रम्म न चलै, डुल्यौ त, डुलत न हथ्थे वर तित परत वीर दोहर तनौ, चामंडां छज्जी लहर ।। ॐ० १०६ । रू०७२। भावार्थ-रू० ७२----नरसिंह ( के संबंधी ) ने क्रोधावेश में तलवार खींच ली और खल ( शत्रु ) के सर पर वार किया जिससे उस पृथ्वी पर गिर पड़ा परन्तु रितें गिरते उसने (नरसिंह के संबंधी के) कटारिमार दी । (कटार लगने से इस वीर के) पैर बिकट वीर कुरंभ को लोथ की अँतड़ियों से उलझ गये । इसने तलवार का सहारा लेना चाहा परन्तु चूक गया और ( स्वयं अपनी तलवार से घायल हो जाने के कारण उसके ) लोहू की धार झर झर करके बह चली ' या---( झरी झर= ) गिरते गिरते उसने तलवार से सहारा लेना चाहा परन्तु चुक गया और बुरी तरह घायल हो गया ]। वह एक पग भी न चल सका; में वह हिला अऔर न उसके श्रेष्ठ हाथ ही हिले । इसको गिरले देखकर दाह का पराक्रमी पुत्र चानंड दुख से परिपूरित हो गया । योउसके गिरने पर दाहर का वीर पुत्र चमंड युद्ध की लहर में उलझ राधा अर्थात भयंकर युद्ध करने लगा है। | शार्थ....८० ७२----लि ग==तलवार निकालकर | नट-प्रस्तुत रू० में जिस वोर की मृत्यु का वर्णन है वह अगले रू० ८४ के अधार पर नरसिंह का संबंधी और हिंभ जति का राजपूत था । इस ८० में छाईराय-एंडर-दाह का नाम, चामंद, आया है जिसका वर्णन पढ़कर अनुमान होता है कि चीरति पाने वाला योद्धा अवश्य ही चामंडराय का संबंधी था। (१) ना०..-पिझ्झ पञ्ज (२) ना०-घाई (३) मो०-२ क्रमन क्रमनत: ना०----¥मन मन (३) न०---नडुप्ल; ए नडुजतन ।