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( ६० ) अर्थ नहीं किये जा सके । फिरी पारस सुरतानी' का अर्थ 'सुलतान की सेना ने उसे घेर लिया’ ही उपयुक्त होगा। तेज <फा० : (तेज़) । अरुहि < सं० अारोह = उठाना । औष< प= प्रकाश । सार सारह == टुकड़े टुकड़े। मिलि = मिलने पर । नच्छित्र रोहिनी-रोहिणी नक्षत्र । ससि<शशि : चंद्रमा उडगन<उडुगण = तारे । [नोट----रोहिणी नक्षत्र तलवार है, पुंडीर का सर चंद्रमा है, टोप के टुकड़े तारे हैं। कबंध = धड़। पंच= पाँच । चव (चौ}=चार | पज पंच चेव = चार पाँच पन तक | कौंन= कौन । भाइ= भाई। कंप्पौ = हिलाना, कॅपाना, डिगाना । धुअ<ध्रुव । कोंन भाइ कंप्पौ जु धुअ= हे भाई ध्र व को कौन टाल सकता है । उठ्यौ= उठा रहा अर्थात् खडा रहा । जरि=जड़ना, मारना । भारे<भाले = बरछे । जरि भारे=भाले जड़ कर या मार कर । तेज<सं० तेजस् = अभा, प्रकाश । कबिन्त । दुजन सल कूरंभ, बंध पल्हन हक्कारिय' ।। सम्हो षां पुरसांन, तेग लंबी उपभारियः ।। टोप दुट्टि बर करिय, सीस पर तुट्टि कमंधं'। मार मार उच्चार, तार तं नंचिकमं ।।। तहँ देषि रुद्र रुद्रह हस्यो, हय ये हय४ नंदी कह्यौ । कवि चंद सयल पुत्री चकित, पिषि बीर भारथ नयौ ।।ॐ०१०३।०६६/ | कबित्त । सोलंकी सारंग, घांन घिलची मुष लगा । वह. पंगा नौ भ्रच इतें चहुआन बिलग्गा ।। है कंधन दिय पाय, कन्ह, उत्तर बिय बाजिय। गज गुंजार हुँकार, धरा गिर कंदर गाजिय ।। जय जय ति देव जय जय करहि, पहुपंजलि पूजत रिन । इक परयौ घेत सोध्दै सकल, इक्क रह्यौ बंधे धुनह् ।।छं०१०४३ रू०७० | भावार्थः–रू० ६६-दुर्जनों को सालने वाले पल्हन के बंधु (=भाई या संबंधी कुरंभ ने हाँक लगई ? या चुनौती दी) । खुरासन खाँ ने उसका सामना किया और (अपनी) लंबी तलवार ऊपर उठाई तथा (उस पर वार किया जिससे उसका) टोप [=शिरस्त्राण] ठूट कर बिखर गया और कबंध से (१) ना--सकारिय (२) ना०-उभ्भारिय (३) मो०---भयौ, हा०—-हहर (४) मो०----हुयं इयं (५) नाs शैल; ए०-सवल; ¥० को-संयल }