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(अपनई बीम) उखाड़ दिया; अपनी रोक हटा दी। पंच बंध= पाँच बाँधवौं के ; सुपथ्धधर- सुन्दर पथ ग्रहण करने पर अर्थात् मरने पर। दिब्धि = देख कर । तौ उप्पर=तुम्हारे बिलकुल ऊपर । होस बढ्ढी (<असि बढ़ी=हौसला बढ़ गया है); हास्य बढ़ गया हैं। बरसीर = श्रेष्ठ नायक । ढुरि= दौड़ कर, जल्दी से । पंच अनी= पाँच सेनायें । एक जुरी =एक कर लिया । मुर== मुड़कर, पीछे। मिलानह= मिलान । रू० ४५–वीर = योद्धा पृथ्वीराज । वर=श्रेष्ठ । बैर=शत्रुता । बर= बरने (जलने) लगी, धधक उठा ! असमान<फी० ८... (आकाश) झुकि= बढ़ कर । तौ नंदन सोमेस को=तभी सोमेश्वर का बेटा हूँ। बंध=बाँध लें । ८० ४६--सों<सौंह< सौगंद=असम ( प्रतिज्ञा की) । सेना जिन= सेना रहित । विधिकंद= कर डालना ।। कथित बर मंगल पंचमी दिन सु दीनौ प्रिथिराजं । राह केतु जप दीन दुष्ट टारे सुभ काजं ।।। अष्ट चक्र जोगिनी भोग भरनी सुधिरा" । गुरु पंचम ६ रवि पंचम अष्ट्र मंगल नृप भारी ।। कैइन्द्र बुद्ध भारथ्थ भल कर त्रिशूल चक्रावलिय। सुभ घरिय राज बर लोन बर चढ्यौ उदै कूरह बनिय ।। भावार्थ-रू० ४७---पंचमी तिथि मंगलवार को पृथ्वीराज ने चढाई की आज्ञा दी। शुभ कार्य में दुष्ट फल को टालने के लिये (महाराज ने) राहु और केतु को जप कराया। इस पंचमी तिथि को (शुभ फल देने वाली) अष्ट्रचक्र योगिनी । तथा ( हनन कार्य के कारण शुभ ) भरणी नक्षत्र में युद्ध में शुभ फल देने वाले थे। शुिभ फलदायक] पंचम स्थान में गुरु । तथा सूर्य ४ थे, और नृप के लिए अशुभ [परन्तु शुभ होने वाले ] अष्टम स्थान में मंगल ५ थे । युद्ध में भला करने वाले केन्द्र स्थान में बुध के थे जो हाथ में त्रिशूल चिन्ह ७ र मणिबंध में चक्र वाले के लिये शुभ थे । इस शुभ भिती से लाभ उठाकर, क्रूर और बलवान अह (सूर्य या मङ्गल) के उदय होने पर महाराज ने चढ़ाई बोल दी । (१) हा०—पंचमि सजुद्ध (२) हा०—-अथिराज (३) १० र ना०-केत।। (४) ना०---जय (४) सुभ रारी (६) न०पंचम ।