पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२८८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(५०)

________________

दिष्षि दूत वर चरित, पास आयो हुने । । तौ ? उप्पर गोरी नरिंद, हास बढढी सुरतानं ।। अर मीर धीर मारूफ हुरि, पंच अनी एकठ जुरी। मुर पंच कोस लाहौर में, मेच्छ मिलानह सो करी ।। ॐ०५२। रू० ४४ दूहो । बीर रोस बर बैर बर, झुकि लगौ असमांन । तौ नन्दन सोमेस को, फिर बंधौं सुरतांन ।। छं० ५३ । रू० ५४ । चंद्र ब्यूह नृप चंधि दल, धनि अथिराज दरिंद । साहि अंधि सुरतांन सों, सेवा बिन विधि कंद ।। छं० ५४ । रू० ४६।। भावार्थ:---रू० ४४---पंडीर वंशियों की घायल लोथों पर शाह ने चिनाब नदी पार की । पाँच भाइयों के सुन्दर पथ ग्रहण करने पर (अर्थात् सरने पर या वीरगति प्राप्त करने पर) चंद पुंडीर ने मुक़ाबिला छोड़ दिया । यह वीर चरित्र देखकर एक दूत चौहान के पास गया र यह समाचार दिया कि ग़ोरी आए के बिलकुर्जे ऊपर आ गया है और सुलतान { को अपनी शक्ति ) का हौसला बढ़ गया है। श्रेष्ठ धैर्यवान वीर मारूफ वाँ ने शीघ्रता पूर्वक पाँचों सेनायें एक कर ली हैं और म्लेच्छ (मारूफ खाँ) ने यह मिलान लाहौर से पाँच कोस आगे किया है [ तात्पर्य यह कि म्लेच्छ सेना लाहौर के बिलकुल समीप आ गई है ] । रू० ४५--वीर (पृथ्वराज) का क्रोध और वैर धधक उठा (जल उठा) ( और उसकी ज्वाला ) आकाश को छूने लगी-- वीर का क्रोध प्रबल हो आकाश में लग गया-यौनँले ] ( और उसने कहा ) 'अब मैं गोरी को फिर बाँध लें तभी सोमेश्वर का बेटा हूँ ।। रू० ४६-यह बचन सुनकर] नृप की चन्द्राकार व्यूह में बँधी सेना ने पृथ्वीराज को धन्य धन्य कहा । और उन्होंने ( सैनिकों ने ) कसम खाई (प्रतिज्ञा की) कि सुलतान की सेना को छिन्न भिन्न करके शाह को बाँध लेंगे। [ह्योर्नले महोदय के अनुसार यह अर्थ है कि स्वनामधन्य महाराज पृथ्वीराज ने अपने सामंतों को चन्द्राकार व्यूह बनाकर खड़ा किया परन्तु सुल.. तान शाह ने अपनी सेना को अस्त व्यस्त बिना किसी व्यूह के ही रहने दिया । शब्दार्थ-- ४४-चिन्हाब=(चिनी + आब) चिनाव (फारसी) । धाय पुंडीर लुथि पर= पुंडीर संशियों की घायल लोथ पर । उप्पार्यौ = (१) ए०-खंच (२) नqि-लग्गै । -- --... . --:--.-...---.