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(दे०Plate No, III, । चमेरसँवर (यहाँ कलँगी से तात्पर्य है) । जोति= चमकती हुई ! पवनसं० पवन-वायु । रुने = बजना । अह अ = अठ ग्रह । सतारक=तारक मंडल सहित } पीत परोपीले रंग की पाग । उर: हृदय, वक्षस्थल । भांन=चमकना । विट=वैशिक नायक; कामतंत्र की कला में निपुर नायक का सहायक सह । कुलटा = दुराचारिणी स्त्री मुष<मुख । कांद्वन=काढ़ना, खींचना । चूंघट = यहाँ घोड़ों की झालर से तात्पर्य है । अस्सु सं० अश्व । बली = बलवान । कुलबद्ध=कुल बधुयें । बरनं<वर्णन । धनअधिक। पु-बराबरी । न न-नहीं । बग्ग पवंनवर्ग प्लवन (यहाँ घोड़ की सरपट चाल से तात्पर्य है) । अगसं० वर्ग= समुदाय समूह । मनं=मन । कुंडलिया नव बज्जी घरियार घर, राजमहल उठिं जाइ । निसा श्रद्ध बर उत्तरे, दूत संपते अइि ।। दूत संपते आइ, धाइ चहुआन सुजग्गिय । सिंह बिहथ्थे मुक्कि, साहि साही उर तग्गिय ।। अट्ठ सहस गजराज, लघु अट्ठारसु ताजिय। उभै सत्त बर कोस, साहि योरी नब बाजिय ।। छं०३७ । रू०३३ । बँचि कागद चहुन नै, फिर न चंद सह थान ।। मनों वीर तनु अंकुरै, मुगति भोग बनि प्रांन ।। ॐ०३८ । रू० ३४ । सची कूह इज़ हिंदु के, कसै सन्नाह सलाह ।। वर चिराक दुस सहस भइ, बजि निसांन अरि दाह ।।छं० ३६। रू० ३५। | भावार्थरू०३३-घर में घड़ियाल ने ( रात्रि के ) नौ बजायें (और पृथ्वीराज ) उठकर राजमहल में गये । जव अद्धरात्रि भली भाँति बीत चुकी थी तब अचानक एक दूत ने आकर शीघ्र चौहान के पास पहुँच उन्हें जगाकर कही कि अब सिंहों के साथ छेड़छाड़ छोड़ कर शहंशाह री की और ध्यान दीजिये । अठि हज़ार हाथी और अठारह लाख घोड़े लिये हुए गोरी नौ बजे चौदह कोस की दूरी पर देखा गया है । ( १ ) ना०—अट्ठारह (२) ए० ऋ० को---जिय (३) ॐ०-सर ( ४ ) ए० कृ०–करे सनाह सनाह (५) ए० ० के० दस-दस ;