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(१०) भावार्थ-रू०७ पालकाव्य की विरह के कारण उनके (हाथियों के) शरीर अत्यन्त क्षीण हो गये तब मुनिवर ने वहाँ (चंपापुरी में ) आकर उनकी भलीभाँति चिकित्सा की। रू०-उन्होंने कोपलें, पराग, पत्तियाँ, छाले, डालियाँ, फल, फूल, कंद, फलियाँ, कलियाँ और जड़ियाँ खिलाकर कुंजरों का शरीर (पुनः) स्थूल कर दिया। शब्दार्थ-रू. ७-~-धीन<सं० क्षीण निर्बल । चिरगछ< प्रा चिरिच्छा <संचिकित्सा ( दवा) । गुन-गुणपूर्वक अर्थात् योग्यतापूर्वक भलीभाँति । कीन (अवधी)=किया। रू०८-~-कोपर<सं० कोपल । पत्रं पत्ते । कद-बिना रेशे की गूदेदा जड़ जैसे सूरन, शकरकंद, गाजर, मूली आदि ( उ०—कंद मूल फल अमिय अहारू-~-रामचरितमानस) । फल्लि फलियाँ। कली कलियाँ । जरियं-जड़ियाँ । कुंजर हाथी (नरो वा कुंजरो वा-महाभारत)। थूलयं<सं० स्थूल । तनं शरीर ! करि (ब्रज)-किया। नोट-रू०७-'गज चिग्गछ गुन कीन' का अर्थ Mr. Growse ने यह किया है—The elephants Sereamed again and again with delight." अर्थात् हाथी बड़ी प्रसन्नता से बार बार चिधारे [Indian Antiquary. vol III, p. 340] । रासो-सार', पृष्ठ हद में लिखा है.--दैव योग से चंपापुरी का राजा रोमपाद वहाँ शिकार करने आया और वह ऐरावत को पकड़कर अपनी राज- धानी को ले गया । इधर हाथी के विरह में पालकाव्य दिन दिन ढुवला होने लगा। अंत में वह उसी सोच में मर गया और हाथी की योनि में जन्मा।" 'रासो-सार' के लेखकों ने यदि छंद ८ के अर्थ को ध्यान में रक्खा होता तो पालकाव्य को मृत्यु का वर्णन कभी न करते । छंद ६-७-८-६-१० में कहीं भी कोई ऐसा शब्द' या शब्द समूह नहीं है जो पालकाव्य मुनि की मृत्यु का द्योतक हो । रू०८-गाथा छंद का लक्षण यह है.---- ___“गाथा या गाहा छंद का प्रयोग प्राकृत भाषा में बहुलता से किया गया है। गाथा छंदों की भाषा अपभ्रंश भाषा के सामान्य रूप लिये हुए प्राकृत पाई जाती है । साधारणतः गाथा छंद का नियम यह है.--- प्रथम चरण ४+४+४/४+४+15+४+६ द्वितीय चरण ४+४+४/४+४+1+४+5