पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२४३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(५)

________________

था। रूपदीप पिंगल वाले ने भी नीचे लिखा छप्पय का लक्ष्ण कहा है उसमें उसने भी यह कहा है कि इस ग्रंथ के बनाने के समय तक छप्पै” का नामांतर ‘कवित्त करके प्रसिद्ध था-- छप्पै ‘लघु दीरघ नहिं नेम । मत्त चौबीस करीजै ।। ऐसे ही तुक सार । धार तुक चार भरीजै ।। नाम रसाबल होय । और वस्तु कमि जानहु ।। उल्लाला की विरत । फेर तिथि रह ग्रानहु ।। है तुक बनावौ अंत की । यत यत में अठ बीस गहु ।।। सुन गरुड़ पंख पिंगल कहै । छदै छंद कवित्त यहु ।। इसके अतिरिक्त मंकांव कृत दुनाथ रूपक' में भी उसने छदै छंदों को कवित्त करके लिखा है ।। বিলে ध्यारि प्रकार पिषि वन वारन । भद्र मंद अग. जाति सधारन ।। पुछि बंद कवि को १ नरपत्तिय ।। सुर वाहन कि आइ धरत्तिय ।। ॐ० ४ । रू० ४ । चंद कवि का उत्तर---- कवित्त “हेमाचल उपकंठ एक वट वृष्प उतरी।। सौ जोजन परिमांन साप तस भंजि मूतंग ।। बहुरि दुरद सद् अंध ढाहि मुनिवर रामं । दीर्घता री चैषि पं दीनो कुपि तमं ।। अंबर विहार गत मंद ५ हुये नरे अरून संग्रहिय ।। संभरि नरिंदै कवि चंद कहि सुर राईद ईम भुवि रहिय !: छ० ५। रू० ५॥ | भार्थ.–० ४–चामंडराये पृथ्वीराज से कहता है--] (उस) वन में भद्र, मंद, मृग और साधारण---{ ये ) चार प्रकार के हाथी देखे जाते हैं ।” ( तब ) नरपति ( पृथ्वीराज ) ने चंद कवि से पूछा कि देवतायों का वहिन पृथ्वी पर किस प्रकार आ गया । {१) न०को (२) at०- उतंगर (३) ना० मतंग (४) ए० मो०-तयारी (५) को० ए०---मंड