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{ २२६ ) बिबरण है । इस प्रस्ताब का अधिक अंश युद्ध का वर्णन करता है जिससे इसके ‘रेवातट' नाम की सार्थकता का साक्षात् किंचित् विभ्रम में डाल देता हैं परन्तु यह बिचारले हो कि सुदूर रेवातट पर मृगया-विनोद-रत अचिन्त चौहान सम्राट प्रबल विपक्षी के वातात्मक अभियान से विचलित न होकर उससे सहर्ष-सोत्साह जे भिड़े, उसका निराकरण कर देता है। 'रेबाट नाम का कोई स्वतन्त्र ससय ७००० छन्द संख्या वाली ओरियन्टल कॉलेज लाहौर की तथा ३५०० छन्द संख्या वाल बीकानेर की रासो प्रतियों में नहीं हैं ग्रेर १३०० छन्द संख्या वाली धारणोज की प्रति में उसकी स्थिति का पता नहीं है। वर्तमान परिस्थिति में यह कहना अनिश्चित ही है कि उपर्युक्त तीनों वाचायों में रेवातट की कथा यदि स्वतन्त्र रूप से पृथक प्रस्ताव में नहीं दी गई है तो क्या वह अंशतः किसी अन्य कथा के साथ मिश्चित भी नहीं है। झाचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने स्वदम्पादित संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो' में रेवाट सयौ' को स्थान नहीं दिया है । परन्तु उनका यह विचार कि पृथ्वीराज रासो' का मूल रूप उनके द्वारा सम्पादित रात के आस-पास होना चाहिये, कोई विशेष विग्रह नहीं खड़ा करता जब उक्त पुस्तक की भूमिका के अन्त में हम पढ़ते हैं---विद्यार्थी को इस संक्षिप्त रूप से रासो की सभी विशेषताओं को समझने की अवसर मिलेगा और वह उस ग्रन्थ की साहित्यिक महिला के प्रति अधिक जिज्ञासु यौर श्राग्रहवान होगा' ! “अासपास' के घेरे की परिधि विस्तृत हो सकती है जिसका स्पष्टीकरण उनको पुस्तक के शीर्ष संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो' का संक्षिप्त' शब्द भी करता है। सूत रासो की खोज के इस प्रकार के विद्वत् । प्रयत्न सराहनीय हैं परन्तु इसे सुमय अतीच याबश्यकता इस बात की है। कि इस काठ की चारों विश्रूत वाचनायें प्रकाश में लाई जायें तभी अधिक अधिकार पूर्वक चर्चा सम्भव और समीचीन हो । प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका और परिशिष्ट छवि चन्द की कृति को समझने का मौलिक प्रयास है जिने ‘क’ वर्णवाल' (कवि धनपाल) के विनम्र शब्दों-'बुधजन संभालमि तुम्ह तेथु' (अर्थात्-हे बुधजन, तुम उसे सँभाल लेना) सहित समाप्त कर रहा हूँ । विपिन बिहारी त्रिवेदी