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{ २२३ } श्यकता इस बात की है कि उक्त वाचनाये अमूल प्रकाशित करवा दी जा जिससे उन पर सभ्य रूप से विचार करके एक निश्चित मत दिया जा सके। वृहत सो पर तो अनेक विद्वानों ने विचार किया है परन्तु उसके अन्य छोटे रूपों को देने और मनन करने का अवसर उनके संग्रह कतयों के अतिरिक्त विरलों के भय में ही पड़ा है। अनैतिहासिक कूड़े करकट को देर से शावृत्त ‘पृथ्वीराज-रास’ साहित्य तरफ से छुपे हुए रास में लिखा हैं, जो तत्कालीन शिलालेख के संवत् विरुद्ध है इत्यादि । लेकिन हमारे पास के रोटे वाले रास में पाटन पर चढ़ाई अादि की घटना का वर्णन नहीं है, अत: कह सकते हैं कि छपे हुए उक्त सो में प्रक्षेप है । एवं पृथ्वीराज की माता का नाम, पृथ्वीराज का जन्म संवत् शादि जिन जिन घटनाओं का उन्होंने (अोझा जी ने) उल्लेख किया हैं वे सब घटनायें हमारे पास के रोटो दाले रास ( ‘छन्द संख्या प्राय छन्द से करीबन ७०००', ‘असली पथ्वीराज रासो' भूमिका, प० ३) में नहीं हैं और न हमारे पास के रस में फार सो शब्द हैं । झा जी कहते हैं कि रासो में दशांश फारसी शब्द हैं, इसका भी पूर्णतया स्वएन इस पुस्तक के प्रकाशित होते ही स्वयं हो जायगा ।” महामहोपाध्याय पं: मथुरा 'प्रसाद दीक्षित, सरस्वती, नवंबर, सन् १९३४ ६०, ४० ४५८; (ब) 'हम ऊपर बतला चुके हैं कि इस { पृथ्वीराज रासो की बीकानेर फीट लाइब्र र को रानसिंह जी के समय की ४००४ छन्द प्रमाए बाली लगभग सं० १६५७ वि० की हस्तलिन्चित प्रति ) में दी हुई चावली विशेष अशुद्ध नहीं हैं। रालो को प्राय: निम्नलिखित कथालकों के कारण कृत्रिम एवं जाती वतलाया जाता है:---- १---अग्निवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति-थई ।। २.पथाबाई और राणा संग्रामसिंह' का विवाह । ३.---भीम के हाथ सोमेश्वर की मृत्यु ।। ४----दाहिमा चामंड की बहिन, शशित्रता एवं हसावती आदि अनेक कन्यायों से पृथ्वीराज का विवाह ।। हमारी प्रति में इन सब कथाओं का अभाव है।” हाँ० दशरथ शर्मा, पृथ्वीराजरोसो की एक प्राचीन प्रति और उसकी प्रमाणिकता, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, कार्तिक १९६६ वि० (सन् १९३९६०), पृ० २८२ .